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आध्यात्मिक चिकित्सा [१] : ५६
समझें कि मन को लगाया और सब कुछ दीखने लग गया। ऐसा नहीं है। कठिन कर्म है। अभ्यास-सापेक्ष है। कितने अवरोध आते हैं। व्यक्ति शरीर की प्रेक्षा करने बैठता है और बीच में ही इतने विकल्प उठ जाते हैं कि शरीर-प्रेक्षा कहीं रह जाती है और मन विश्व की यात्रा करने निकल पड़ता है, ऑफिस की या दुकान की यात्रा करने के लिए प्रस्थान कर देता है। जब हम मन को भावित करना सीख जाते हैं, संकल्पशक्ति दृढ़ हो जाती है तब ये यात्राएं नहीं होतीं। विकल्प और विचार के परमाणु हमारे मस्तिष्क के आस-पास मंडराते हैं, किन्तु हमारी आत्मा भावित है, मन भावित है और मंत्र की आराधना से हमारी संकल्पशक्ति विकसित है तो वे परमाणु भीतर प्रवेश नहीं कर पाएंगे। मंत्र एक कवच है, प्रतिरोधात्मक शक्ति है, एक सशक्त दुर्ग है। बाहर का एक अणु भी भीतर प्रवेश नहीं पा सकता। जिस व्यक्ति ने आध्यात्मिक मंत्रों की आराधना के द्वारा अपने मन को भावित कर लिया, अपने मस्तिक के चारों ओर एक मजबूत कवच बना लिया, उसमें बुरे विचार के परमाणु कभी प्रवेश नहीं कर पाएंगे। वे परमाणु आएंगे, टकराएंगे, टकरा-टकराकर लौट जाएंगे, भीतर नहीं जा सकेंगे, क्योंकि भीतर प्रवेश करने की क्षमता नहीं रहती। ___ डॉक्टर दो दिशाओं में काम करता है। वह बीमारी के कीटाणुओं को नष्ट करने की दवा देता है और साथ-साथ प्रतिरोधात्मक शक्ति को बढ़ाने का भी उपाय करता है। जिस रोगी की प्रतिरोधात्मक शक्ति कम होती है, जिसका रजिस्टेंट पॉवर कम होता है, उसको दी जाने वाली औषधियां अधिक लाभप्रद नहीं होतीं। जब शरीर में बीमारियों से लड़ने की शक्ति नहीं है तब दवाई क्या करेगी ? दवाई काम तब करती है, जब शरीर उसका काम करे, शरीर की प्रकृति उसका सहयोग करे। जब प्रतिरोधात्मक शक्ति विकसित होती है, बीमारी से जूझने की क्षमता होती है, तब दवाई काम करती है। दोनों साथ-साथ चलने चाहिए-बीमारी के कीटाणुओं का नाश और उनसे जूझने की प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास।
मंत्र के द्वारा दोनों काम होते हैं—(१) मन की विकृति मिटती है (२) प्रतिरोधात्मक शक्ति विकसित होती है। शक्ति इतनी बढ़ जाती है कि बाहर के आक्रमण का भय नहीं रहता। ऊर्जा का वातावरण प्रबल बन जाता है। बाहर के आघात कम पहुंचते हैं या पहुंचते ही नहीं। जिस व्यक्ति ने
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