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________________ 1 हैं। इसमें नमस्कार महामंत्र का अस्तित्वकाल आचार्य पुष्पदन्त से बहुत पहले चला जाता है । शयंभवसूरी का दशवैकालिक में प्राप्त निर्देश भी इसी ओर संकेत करता है । भगवान् महावीर दीक्षित हुए तब उन्होंने सिद्धों को नमस्कार किया था । उत्तराध्ययन के बीसवें अध्ययन के प्रारम्भ में ‘सिद्धाणं नमो किच्चा, संजयाणं च भावओ' – सिद्ध और साधुओं को नमस्कार किया गया है। इन सबसे यह निष्कर्ष निकलता है कि नमस्कार की परिपाटी बहुत पुरानी है और उसका रूप भी बहुत पुराना है, किन्तु भगवान् महावीर के काल में पंचमंगलात्मक मंत्र प्रचलित था या नहीं, इस प्रश्न का निश्चयात्मक उत्तर देना सरल नहीं है । महानिशीथ के उक्त प्रसंग के आधार पर कहा जा सकता है कि वर्तमान स्वरूप वाला नमस्कार महामंत्र भगवान् महावीर के समय में प्रचलित था । किन्तु उसकी पुष्टि के लिए कोई दूसरा प्रमाण अपेक्षित है । आवश्यक निर्युक्ति में एक महत्त्वपूर्ण सूचना मिलती है। नियुक्तिकार ने लिखा है —— पंचपरमेष्ठियों को नमस्कार कर सामायिक करना चाहिए, यह पंच नमस्कार सामायिक का ही एक अंग है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि नमस्कार महामंत्र उतना ही पुराना है, जितना सामायिक सूत्र । सामायिक आवश्यक का प्रथम अध्ययन है । नंदी में आई हुई आगम की सूची में उसका उल्लेख है | नमस्कार महामंत्र का वहां एक श्रुतस्कन्ध या महाश्रुतस्कंध के रूप में कोई उल्लेख नहीं है। इससे भी अनुमान किया जा सकता है कि यह सामायिक अध्ययन का एक अंगभूत रहा है। सामायिक के प्रारम्भ में और उसके अंत में पंचपरमेष्ठी को नमस्कार किया जाता था । कायोत्सर्ग के प्रारम्भ और अन्त में भी पंच नमस्कार की पद्धति प्रचलित थी । आचार्य भद्रबाहु के अनुसार नंदी और अनुयोगद्वार को जान कर तथा पंच मंगल को नमस्कार कर सूत्र का प्रारम्भ किया जाता है। संभव है इसीलिए अनेक आगम-सूत्रों के प्रारम्भ में नमस्कार महामंत्र लिखने की पद्धति प्रचलित हुई । जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने उसी आधार पर नमस्कार महामंत्र को सर्वश्रुतान्तर्गत बतलाया। उनके अनुसार पंच नमस्कार करने पर ही आचार्य सामायिक आदि आवश्यक और क्रमशः शेष श्रुत शिष्यों को पढ़ाते थे । प्रारम्भ में नमस्कार मंत्र का पाठ और उसके बाद आवश्यक का पाठ किया जाता था । इस दृष्टि से उसे सर्व श्रुताभ्यन्तरवर्ती कहा गया। फिर भी नमस्कार मंत्र को जैसे सामायिक का अंग बतलाया है, वैसे किसी अन्य आगम का अंग नहीं बताया गया है। इस दृष्टि से नमस्कार महामंत्र का मूलस्रोत सामायिक अध्ययन ही सिद्ध होता है । आवश्यक या सामायिक अध्ययन के कर्त्ता यदि गौतम गणधर को माना जाए तो पंच मंगलरूप नमस्कार महामंत्र के कर्त्ता भी गौतम गणधर ही ठहरते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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