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प्रस्तुति
नमस्कार महामंत्र का मूलस्रोत और कर्ता
नमस्कार महामंत्र आदि-मंगल के रूप में अनेक आगमों और ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। अभयदेव सूरी ने भगवती सूत्र की वृत्ति के प्रारम्भ में नमस्कार महामंत्र की व्याख्या की है। प्रज्ञापना के आदर्शों में प्रारम्भ में नमस्कार महामंत्र लिखा हुआ मिलता है, किन्तु मलयगिरि ने प्रज्ञापनावृत्ति में उसकी व्याख्या नहीं की। षट्खण्ड के प्रारम्भ में नमस्कार महामंत्र मंगल-सूत्र के रूप में उपलब्ध है। इन सब उपलब्धियों से उसके मूल स्रोत का पता नहीं चलता। महानिशीथ में लिखा है कि पंचमंगल महाश्रुतस्कंध का व्याख्यान सूत्र की नियुक्ति. भाष्य और चूर्णियों में किया गया था और वह व्याख्यान तीर्थंकरों के द्वारा प्राप्त हुआ था। कालदोष से वे नियुक्ति, भाष्य और चूर्णियां विच्छिन्न हो गईं। फिर कुछ समय बाद वज्रस्वामी ने नमस्कार महामंत्र का उद्धार कर उसे मूल सूत्र में स्थापित किया। यह बात वृद्ध सम्प्रदाय के आधार पर लिखी गई है। इससे भी नमस्कार मंत्र के मूलस्रोत पर कोई प्रकाश नहीं पड़ता। ___ आवश्यक नियुक्ति में वज्रसूरी के प्रकरण में उक्त घटना का उल्लेख भी नहीं है । वज्रसूरी दस पूर्वधर हुए हैं, उनका अस्तित्वकाल ई० पू० पहली शताब्दी है। शयंभवसूरी चतुर्दश पूर्वधर हुए हैं और उनका अस्तित्वकाल ई० पू० ५-६ शताब्दी है। उन्होंने कायोत्सर्ग को नमस्कार के द्वारा पूर्ण करने का निर्देश दिया है। दशवैकालिक सूत्र की दोनों चूर्णियों और हारिभद्रीय वृत्ति में नमस्कार की व्याख्या ‘णमो अरहंताणं' मंत्र के रूप में की है।
आचार्य वीरसेन ने षट्खंडागम के प्रारम्भ में दिए गए नमस्कार महामंत्र को निबद्ध मंगल बतलाया है। इसका फलित यह होता है कि नमस्कार महामंत्र के कर्ता आचार्य पुष्पदन्त हैं। आचार्य वीरसेन ने यह किस आधार पर लिखा, इसका कोई अन्य प्रमाण उपलब्ध नहीं होता। जैसे भगवती-सूत्र की प्रतियों के प्रारम्भ में नमस्कार महामंत्र लिखा हुआ था और अभयदेवसूरी ने उसे सूत्र का अंग मानकर उसकी व्याख्या की, वैसे ही आचार्य पुष्पदन्त को उसका कर्ता बतला दिया। आचार्य पुष्पदन्त का अस्तित्व-काल वीर-निर्वाण की सातवीं शताब्दी (ई० की पहली शताब्दी) है। खारवेल का शिलालेख ई० पू० १५२ का है। उसमें 'नमो अरहंताणं', 'नमो सव्व सिद्धाणं'—ये पद मिलते
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