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आध्यात्मिक चिकित्सा [१] : ५७
आदमी डकैती नहीं कर सकता, हर आदमी हत्या नहीं कर सकता । जिस व्यक्ति ने क्रूरता के विचारों से अपने-आपको भावित कर लिया है, वही हत्या कर सकता है, डकैती डाल सकता है, चोरी कर सकता है । वही क्रूर कर्म कर सकता है । जिस व्यक्ति ने अपने विचारों को, अपने मन को भावित नहीं किया, वह व्यक्ति अच्छा काम नहीं कर सकता । अच्छे विचारों से भी मन को भावित किया जा सकता है और बुरे विचारों से भी मन को भावित किया जा सकता है ।
भावित होने पर रासायनिक परिवर्तन होते हैं । पानी जब रंगीन बोतलों में सूर्य की रश्मियों से भावित होता है तब उसके गुण-धर्म बदल जाते हैं, उसकी शक्ति बदल जाती है, उसकी क्षमता बदल जाती है। हर व्यक्ति और हर पदार्थ भावित हो सकता है । व्यक्ति जिस प्रकार की भावना से अपने आपको भावित करता है, वह वैसा ही हो जाता है । 'यादृशी भावना यस्य, बुद्धिर्भवति तादृशी — जिसकी जैसी भावना होती है, उसकी बुद्धि वैसी ही बन जाती है ।
मंत्र की साधना भावना का प्रयोग है। मंत्र की साधना अपने आपको भावित करने की साधना है । जब हम अर्हत् का ध्यान करते हैं तो अर्हत् की विशेषताओं से मन को भावित करते हैं । जैसे ही ' णमो अरहंताणं' - अर्हत् का ध्यान किया, चाहे अक्षर-ध्यान किया — पद के एक-एक अक्षर का ध्यान किया, चाहे पद का ध्यान किया, चाहे अर्थ का ध्यान किया, इससे हमारे मन का कण-कण, हमारी चेतना का कण-कण अर्हत् से भावित हो जाता है और साधक स्वयं अर्हत् बन जाता है। आचार्य कुन्दकुन्द ने लिखा है - जो व्यक्ति अर्हत् को जानता है वही अपनी आत्मा को जान सकता है ।
'जो जाणदि अरहन्ते, दव्यत्तगुणत्तपञ्जवत्तेहिं ।
सो जाणदि अप्पाणं, मोहो तस्स लयं जादि । । '
- जो द्रव्य, गुण और पर्याय के द्वारा अर्हत् को जानता है, वही अपनी आत्मा को जान सकता है। जो अपनी आत्मा को जानता है, उसका मोह विलीन हो जाता है । '
जैसे ही हमने कहा अर्हत्, अर्हत् के गुण, द्रव्य और पर्याय - सब हमारी चेतना में स्वयं स्फूर्त हो गए। बार-बार अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन,
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