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________________ ५६ : एसो पंच णमोक्कारो करे और जो मन करे वही शरीर करे। दोनों साथ-साथ चलें। मन पूरब में और शरीर पश्चिम में न जाए। मन भी पूरब में जाए और शरीर का कर्म भी पूरब में जाए। दोनों के पैर साथ-साथ उठे, एक साथ समानान्तर रेखा में उठें। इस जागरूकता का नाम है-भावक्रिया। दूसरा तत्त्व है—कायोत्सर्ग। इसका अर्थ है-शिथिलीकरण । श्वास को शान्त करना, शरीर की चेष्टाओं को शान्त करना, मन को खाली करना, कायोत्सर्ग है | कायोत्सर्ग का पूरा अभ्यास किए बिना प्रेक्षा-ध्यान की साधना नहीं हो सकती। जब मन में तनाव है, मस्तिष्क और स्नायुओं में तनाव है तब प्रेक्षा-ध्यान कैसे होगा ? जब तनाव की स्थिति होती है, तब बुरे विचारों को, विकल्पों को आने का अवसर प्राप्त होता है। तनाव विकल्पों के लिए उर्वरा भूमि है। विकल्पों के बीज तनाव की उर्वरा भूमि में ही बोए जाते हैं। वे वहीं अंकुरित होते हैं, पुष्पित और फलित होते हैं। इसलिए तनाव को मिटाना जरूरी है। ___ मानसिक तनाव, स्नायविक तनाव, भावनात्मक तनाव-इनको मिटाना, तनाव की ग्रन्थियों को खोल देना, यह है कायोत्सर्ग। तीसरा तत्त्व है—भावना। भावना का अर्थ है—संकल्पशक्ति। हम जिस मंत्र की चर्चा कर रहे हैं, वह भावना का प्रयोग है। अहँ की ध्वनि करते हैं, वह भी भावना का प्रयोग है। हम साधना के प्रारम्भ में अहँ की ध्वनि इसलिए करते है कि ध्यान का वातावरण बन जाए। सारा वायुमंडल ध्यानमय बन जाए और सारे विचार उसमें खो जाएं, सारा स्थान ध्यान के परमाणुओं के उपयुक्त वातावरण से भर जाए। जो व्यक्ति भावना से भावित नहीं होता, वह ध्यान की साधना नहीं कर सकता। प्राचीन शब्द है.-भावितात्मा और आज के मनोविज्ञान का शब्द है-इच्छाशक्ति से संपन्न । इसको हम संकल्पशक्ति का विकास भी कह सकते हैं। जैन आगम, बौद्ध पिटक, महाभारत, गीता आदि ग्रन्थों में भी भावितात्मा शब्द प्रयुक्त हुआ है। जो भावितात्मा नहीं होता, जिसने अपनी आत्मा को भावित नहीं किया, वह साधना नहीं कर सकता। साधना तो क्या, वह बुरा काम भी नहीं कर सकता। बुरा काम करने के लिए भी भावित आत्मा होना जरूरी है। जो व्यक्ति क्रूरता से अपने मन को भावित नहीं करता, वह हत्या नहीं कर सकता, चोरी नहीं कर सकता। हर आदमी चोरी नहीं कर सकता, हर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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