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________________ आध्यात्मिक चिकित्सा [१] : ५५ तीनों बातें पूरी होती हैं। अर्थ कुछ भी नहीं निकला । वलय का आदि-अन्त नहीं बताया जा सकता। यह एक उलझन है। उसको सुलझाने के लिए हमें प्रेक्षा-ध्यान की पद्धति से अभ्यास करना होगा। प्रेक्षा-ध्यान के पांच आधारभूत तत्त्व हैं---भावक्रिया, कायोत्सर्ग, भावना, अनुप्रेक्षा और प्रेक्षा। पहला तत्त्व है—भावक्रिया। मन को जागरूकता का प्रशिक्षण देना भावक्रिया है। जब तक मन जागरूक नहीं होता, तब तक कुछ भी नहीं सधेगा, प्रेक्षा-ध्यान की साधना असंभव हो जाएगी। मैं बार-बार यही दोहराता हूं--प्रत्येक श्वास को जानते हुए लें। आप कहेंगे—यह कौन-सा बड़ा रहस्य है ? अध्यात्म की कौन-सी गुत्थी सुलझाई जा रही है ? मैं कहना चाहूंगा कि इसे छोटी बात न समझें। यह बहुत बड़ी बात है। जब तक यह छोटी बात सिद्ध नहीं होगी, कुछ भी नहीं होगा। श्वास के प्रति हम जागरूक नहीं रहेंगे, 'मैं श्वास ले रहा हूं' –इस प्रकार की जागरूकता जब तक नहीं सधेगी तब तक और किसी काम में जागरूकता नहीं सधेगी। इस स्थिति में प्रेक्षा-ध्यान संभव ही नहीं होगा। मन को इतना जागरूक बना लें कि जो करें उसकी स्मृति में ही मन लगा रहे । मन अन्यत्र न जाए। यह जव सध जाती है तब सिद्धियां अपने-आप उपलब्ध हो जाती हैं। ____एक अनुभवी साधक मिला। उसने बताया कि उसे वाक्सिद्धि प्राप्त है। मैंने पूछा-इसकी विधि क्या है ? उसने बताया—निश्चित काल, निश्चित स्थान और निश्चित वाक्य तीनों का अभ्यास करने से वासिद्धि हो सकती है। उदाहरण के लिए--बारह बजे, अमुक स्थान पर, अहँ या किसी भी मंत्र का या किसी भी शब्दावली का उच्चारण करना है तो वह करना ही है, एक क्षण भी इधर-उधर न हो। निश्चित समय, निश्चित स्थान और निश्चित शब्दावली का यदि लंबे समय तक अभ्यास किया जाए तो वाणी में शक्ति आ सकती है, वचनसिद्धि हो सकती है। क्योंकि मन इतना जागरूक हो गया कि उसमें कोई अन्तर नहीं आ सकता। वारह बजते ही मन अपनी क्रिया दोहरा देगा। जब मन की जागरूकता इतनी बढ़ जाती है तब सब कुछ संभव हो जाता है। जब मन सोया हुआ है, अजागरूक है, तब कुछ भी घटित नहीं हो सकता। मन और कर्म की एकता—यह है भावक्रिया। जो शरीर करे वही मन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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