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५४ : एसो पंच णमोक्कारो
हो सकती है, मंत्र के द्वारा भी यह स्थिति उपलब्ध हो सकती है कि व्यक्ति में सभी प्रकार के कष्टों, कठिनाइयों, विषम परिस्थितियों को झेलने की क्षमता जाग जाए। वह घटना को तटस्थ भाव से देखे, उसमें लिप्त न हो। उसे भोगे नहीं।
संकल्प टूटने का दूसरा कारण है-परिस्थितियों को झेलने की क्षमता ।
संकल्प टूटने का तीसरा कारण है—चित्त की चंचलता। जिसका चित्त चपल होता है उसका संकल्प टूट जाता है। जब चित्त की एकाग्रता सध जाती है, तब संकल्प नहीं टूटता । चित्त में उठने वाले विकल्प, उतार-चढ़ाव संकल्प को टिकने नहीं देते। व्यक्ति उस चपलता में बह जाता है, संकल्प कहीं रह जाता है।
संकल्प को अटूट रखने के लिए, दृढ़ निश्चय के लिए तीन बातें आवश्यक होती हैं--(१) इन्द्रिय विजय, (२) कष्ट झेलने की क्षमता का विकास और (३) चित्त की एकाग्रता ।
हम नमस्कार महामंत्र के ध्यान का अभ्यास इसीलिए कर रहे हैं कि हमारी संकल्पशक्ति विकसित हो, दृढ़ हो। हम इसे उलटकर समझें। तीन प्रश्न होगे- इन्द्रियों को वश में कैसे करें ? कठिनाइयों को झेलने की क्षमता कैसे पैदा करें ? मन को एकाग्र कैसे करें ? ये प्रतिप्रश्न होंगे। हमें इनका उत्तर उसी में खोजना है। जब हमारी संकल्पशक्ति दृढ़ होती है तब इन्द्रियां वश में हो जाती हैं, कठिनाइयां झेलने की चेतना जाग जाती है और मन की चंचलता मिट जाती है। फिर एक उलझन सामने आ गई। ये होते हैं तब संकल्पशक्ति दृढ़ होती है और इन्हें दृढ़ करने के लिए संकल्पशक्ति का विकास चाहिए। एक उलझन-भरा अन्योन्याश्रय दोष आ गया। एक व्यक्ति ने पूछा--'तुम किसके नौकर हो ?' उसने कहा---'जिसका यह घोड़ा है, उसका मैं नौकर हूं।' फिर पूछा—'यह घोड़ा किसका है ?' उसने कहा---'जिसका मैं नौकर हूं, उसका यह घोड़ा है।' जिसका यह घोड़ा है, उसका मैं नौकर हूं और जिसका मैं नौकर हूं, उसका यह घोड़ा है। बात दोनों कह दीं, किन्तु समझ में एक भी नहीं आई। प्रश्न का समाधान नहीं मिला। ऐसा कथन अन्योन्याश्रय दोष कहलाता है।
यही अन्योन्याश्रय दोष इस कथन में आता है---तीनों बातें पूरी होती हैं तब संकल्पशक्ति दृढ़ होती है और जब संकल्पशक्ति दृढ़ होती है त
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