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________________ आध्यात्मिक चिकित्सा [१] : ५३ ने आराध्य देव तक कठिनाई नहीं आती तब तक मन विश्वास से भरा रहता है। जब कठिनाई आती है, तब विश्वास हिल उठता है और व्यक्ति कहने लगता है--धर्म या देव फालतू हैं, झूठे हैं, बकवास हैं। छोड़ो इन सबको। वह नास्तिक बन जाता है। वह धर्म को छोड़ देता है। व्यक्ति पहले भ्रान्ति पालता है और फिर नास्तिकता की ओर जाता है। इसलिए हम भ्रान्तियां न पालें। हम इस सचाई को मानकर चलें कि दुनिया में कोई भी व्यक्ति उतार-चढ़ाव, आरोह-अवरोह से बच नहीं सकता। सबमें अनुकूल स्थतियां भी आती हैं और प्रतिकूल स्थितियां भी आती हैं। प्रश्न होता है फिर धर्म का क्या लाभ हुआ ? मंत्र जपने का क्या लाभ हुआ ? अपने आराध्य देव की शरण में जाने का क्या लाभ हआ ? हम स्पष्ट जाने कि धर्म का काम यह नहीं है कि कठिनाइयां न आएं। धर्म का काम यह है कि वह व्यक्ति को कठिनाइयां झेलने में सक्षम बनाए। जो व्यक्ति यथार्थ में धार्मिक होता है, वह कठिनाइयों को हंसते-हंसते झेल लेता है। जिस व्यक्ति में धर्म की चेतना जागृत नहीं होती, वह कठिनाइयों के आने पर घुटने टेक देता है और हीन-भावना से ग्रस्त हो जाता है। धर्म हमारी रक्षा करता है। मंत्र हमारी रक्षा करता है। ये हमें कठिनाइयों से उबार लेते हैं। कठिनाई आना एक बात और उस कठिनाई को भोगना, उसका संवेदन करना दूसरी बात है। एक है घटना और एक है घटना का संवेदन, उसका भोग। घटना को नहीं टाला जा सकता, किन्तु भोगने को टाला जा सकता है। जिस व्यक्ति में धर्म की चेतना जाग जाती है वह घटना को जान लेता है, भोगता नहीं। __आप सब शरीर-प्रेक्षा कर रहे हैं। आपने मुझे यह बार-बार कहते सुना होगा कि आप प्रतिक्रिया न करें। दर्द हो, पीड़ा हो, वेदना हो तो उसे समभावपूर्वक देखें, उसे द्रष्टाभाव से देखें, कोई प्रतिक्रिया न करें। यह है प्रेक्षा । इसका यह तात्पर्य नहीं है कि आप प्रेक्षा करेंगे तो आपका दर्द मिट जाएगा, पीड़ा मिट जाएगी। ये मिट भी सकते हैं, किन्तु यह कोई अनिवार्यता नहीं है। यह अनिवार्य है, निश्चित है कि दर्द या पीड़ा को भोगना अवश्य ही मिट जाएगा। आप दर्द को तटस्थ भाव से देखेंगे। ऐसे देखेंगे कि घुटने में दर्द हो रहा है और आप दूर खड़े यह देख रहे हैं कि घुटने में दर्द है। मुझे दर्द नहीं हो रहा है, घुटने में दर्द हो रहा है। आप उसे द्रष्टाभाव से देखते चले जा रहे हैं। धर्म के द्वारा यह स्थिति उपलब्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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