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५२ : एसो पंच णमोक्कारो
कथानक है। राजा बहुत बीमार हो गया। वैद्य ने चिकित्सा की। राजा नीरोग हो गया। जाते-जाते वैद्य ने कहा—'राजन् ! तुम्हारा रोग ठीक हो गया। अब एक बात का परहेज रखना, आम कभी मत खाना। जब तक तम आम नहीं खाओगे, यह बीमारी नहीं होगी। जिस दिन तुम आम खा लोगे, फिर बीमारी से आक्रान्त हो जाओगे। फिर चिकित्सा नहीं हो सकेगी।' राजा ने कहा—ठीक है, आम नहीं खाऊंगा। ___ एक बार राजा अपने ही आम के बगीचे में घूम रहा था। आम का मौसम था। वृक्ष फलों से लदे थे। राजा ने एक आम्र-वृक्ष के नीचे विश्राम किया। मंत्री ने रोका, पर राजा नहीं माना। हवा चली। एक पका आम राजा की गोद में आ गिरा। राजा ने उसे उठाया, सूंघा। मंत्री से बोला-'कितना सुन्दर और सुगन्धित आम है ।' मंत्री ने कहा- 'महाराज ! वैद्य की शिक्षा को याद करें। आम सूंघना भी मना है और खाना भी मना है।' राजा ने कहा- 'वैद्य तो पागल होते हैं। एक आम सूंघने या चूसने में हानि भी क्या है ?' इतना कहकर राजा आम चूसने लगा और उसके मीठे रस में तल्लीन हो गया। मंत्री ने रोकना चाहा, पर व्यर्थ । आम खाने से जो परिणाम होना था, वही हुआ। राजा मर गया ।
जब इन्द्रियों पर नियंत्रण नहीं होता तब हजार बार निश्चय कर लेने पर भी संकल्प दृढ़ नहीं होता। वह टूट जाता है। यह पहली बात है। _दूसरी बात यह है कि जो कठिनाइयां नहीं झेल सकता, उसका संकल्प नहीं चल सकता। इस दुनिया में कोई आए और उसे कठिनाइयों से न गुजरना पड़े, यह असंभव बात है। मैं तो समझता हूं कि यदि भगवान् भी इस दुनिया में आ जाएं तो वे भी कठिनाइयों से नहीं बच सकते। बहुत सारे लोग भ्रान्ति में रहते हैं। मंत्र की साधना करने वाले भी अनेक भ्रान्तियां पालते हैं। देवालयों की परिक्रमा करने वाले और देवी-देवताओं को पूजने वाले भी भ्रान्ति में रहते हैं। वे सोचते हैं—मंत्र हमारी रक्षा करेगा, देवी-देवता हमारी रक्षा करेंगे। हमने मंत्र की और देवी-देवता की शरण ले ली है, अब कोई कठिनाई नहीं आएगी। इस भ्रान्ति को तोड़ डालना चाहिए। जो इस भ्रान्ति में रहते हैं, वे नास्तिक बन जाते हैं। भ्रान्ति का पहला परिणाम है-- नास्तिकता। मन में यह भ्रान्ति पाल ली कि मैंने अमुक देव या अमुक धर्म की शरण ली है, अब कोई कठिनाई नहीं आएगी। जब
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