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________________ आध्यात्मिक चिकित्सा [१] : ५१ न्यून भाग ही जागृत रहता है। जब मंत्र की पूरी शक्ति जाग जाती है, उसका वीर्य जागृत हो जाता है तब मंत्र ‘महामंत्र बन जाता है। महामंत्र तब बनता है जब वीर्य जागृत हो और वीर्य जागृत तब होता है जब प्राण और मंत्र की एकता स्थापित हो। शक्ति केन्द्र से ज्ञान के चैतन्य केन्द्रों में जब शब्द की धारा, भावना की धारा प्रवाहित होती है, मंत्र और प्राण एकात्मक बन जाते हैं, उनकी एकता स्थपित हो जाती है तब मंत्र में वीर्य प्रकट होता है। वीर्य के द्वारा ही संकल्पशक्ति का विकास होता है। हमारे जीवन की सफलता में संकल्पशक्ति का बहुत बड़ा योगदान है। संकल्पशक्ति के अभाव में कोई कार्य सफल नहीं होता। आदमी सुबह संकल्प करता है और सांझ को वह टूट जाता है। संभवतः घंटा बाद ही टूट जाए। दूसरा विचार आते ही संकल्प बदल जाता है। एक आदमी ने दूसरे आदमी की कटुवाणी को सुना और सहन कर लिया। मौन रहा। दस मिनट बाद किसी ने आकर कहा- क्या तुम मिट्टी के बने हो ? उसने इतनी कटु वात कही और तुम सुनते रहे ! मुंह में जबान नहीं थी ? इतना सुनते ही उसकी भावना बदल गई। सहन और क्षमा करने का भाव बदल गया। उसने सोचा-'उसने एक बात कही, तो मेरा पुरुषार्थ इसी में है कि मैं उसे दस बातें सुनाऊं । लोग भी मुझे लौह-पुरूष कहेंगे। मिट्टी का पुतला थोड़े ही हूं कि सब कुछ सहता चलूं ।' ये विचार उसको संकल्प से विचलित कर देते हैं। संकल्प क्यों टूटता है ? एक आचार्य ने बहुत सुन्दर वात कही है : अनिरुद्धाक्षसन्तानाः, अजितोग्रपरीषहा । अव्यक्तचित्तचापल्याः, प्रस्खलन्त्यात्मनिश्चये।। ____'जिस व्यक्ति ने अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण स्थापित नहीं किया, जिस व्यक्ति ने कठिनाइयों को झेलने की क्षमता प्राप्त नहीं की और जिस व्यक्ति ने चित्त की चपलता को नहीं छोड़ा, वह व्यक्ति अपने संकल्प से स्खलित हो जाता है।' ___ आचार्य ने संकल्प टूटने के तीन कारणों का उल्लेख किया(१) इन्द्रियों की अनियंत्रित वृत्ति, (२) कठिनाइयों को झेलने की अक्षमता, (३) चित्त की चंचलता।। मनुष्य इन्द्रियों का दास होता है। इन्द्रियों के वशीभूत होकर वह नहीं चाहने पर भी अनेक कार्य कर बैठता है। उत्तराध्ययन सूत्र का एक प्रसिद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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