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६. आध्यात्मिक चिकित्सा [१]
मंत्रशास्त्रीय दृष्टिकोण से जिसका वीर्य प्रकट हो जाए वह महामंत्र । शक्तिकेन्द्र आदि चैतन्यकेन्द्रों में मंत्र और प्राणशक्ति की एकता होती है। वहीं वीर्य प्रकट होता है ।
वीर्यवान् मंत्र ही संकल्पशक्ति का विकास है ।
प्रेक्षाध्यान के मूल तत्त्व
भावक्रिया मन को जागरूक बनाने का अभ्यास ।
कायोत्सर्ग—— शिथिलीकरण का अभ्यास ।
भावना— संकल्पशक्ति के विकास का अभ्यास ।
अनुप्रेक्षा— मूर्च्छा तोड़ने का अभ्यास ।
हो
नमस्कार मंत्र महामंत्र है, यह समझने का हमने प्रयत्न किया आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, उसकी स्वरूपबद्ध विशेषताओं से और भावों की विशेषताओं से। मंत्र साधना की दृष्टि से भी यह महामंत्र है। मंत्र साधना की दृष्टि से महामंत्र वह होता है जिस मंत्र का वीर्य जागृत जाता है । जिस मंत्र का वीर्य जागृत नहीं होता वह महामंत्र नहीं होता । विश्व के कण-कण में जो घटित हो रहा है वह सारा वीर्य के द्वारा घटित हो रहा है । एक भी अणु वीर्य - शून्य नहीं है । शक्ति का एकछत्र साम्राज्य है । चेतन में शक्ति है तो अचेतन में भी शक्ति है । किन्तु जितनी शक्ति चेतन या पदार्थ में होती है वह पूरी की पूरी जागृत नहीं होती । शक्ति का बहुत बड़ा भाग, सत्तर - अस्सी या नब्बे प्रतिशत भाग सोया ही रहता है । केवल दस प्रतिशत या इससे भी
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