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________________ ४८ : एसो पंच णमोक्कारो कि ऐसा नहीं करता तो अच्छा होता। करते समय सुख अनुभव होता है और करने के बाद दुःख होता है ! यह ऐसा सुख है जिसके साथ अनुताप जुड़ा हुआ है। पुद्गल से प्राप्त होने वाला ऐसा एक भी सुख नहीं है जिसके साथ दुःख की परम्परा जुड़ी हुई न हो, सन्ताप की परम्परा संलग्न न हो। ___ध्यान करने वाले किसी भी व्यक्ति ने यह नहीं कहा कि अच्छा होता यदि मैं ध्यान नहीं करता। इसका कारण है कि जो सुखानुभूति ध्यान से प्रसूत होती है, वह आनन्द देती है। ध्यान अध्यात्म की यात्रा है। इसमें दूसरे की कसौटी, दूसरे का मानदंड और दूसरे का तराजू काम नहीं देता। अपनी कसौटी, अपना मानदंड और अपनी तुला ही इसमें काम देती है। जहां अपना अनुभव जाग जाता है, अपनी चेतना जाग जाती है वहां व्यक्ति स्वयं में कसौटी होता है, स्वयं ही तुला होता है। यह स्थिति प्राप्त होते ही पुरानी धारणाएं बदल जाती हैं, सारे मानदंड बदल जाते हैं। तब व्यक्ति अपने आपको खाली करने में लग जाता है। खाली होने की यह अवस्था ही निर्विकल्प अवस्था है। जब हम मंत्र की साधना के द्वारा, शब्द के सहारे विकल्प से चलते-चलते निर्विकल्प स्थिति तक पहुंचते हैं, उस समय चैतन्य का नया उन्मेष जागता है। इसीलिए नमस्कार मंत्र महामंत्र है। नमस्कार मंत्र के महामंत्र होने का चौथा हेतु है—इससे वृत्तियों का ऊर्वीकरण, बुद्धि का ऊर्ध्वारोहण होता है। हमारी शरीर-रचना में जो बुद्धि का स्थान है, वृत्तियों का स्थान है, उनके केन्द्र हैं, वे सारे नीचे की ओर मुंह किए हुए हैं। वृत्तियां नीचे की ओर, वुद्धि नीचे की ओर, इसीलिए आदमी का चिंतन नीचे की ओर जाता है। नीचे हमारा कामना-केन्द्र है, हमारी सारी बुद्धि काम-केन्द्र की ओर जाती है। हमारी चेतना का पूरा प्रवाह नीचे की ओर जाता है। जब हम नमस्कार महामंत्र की आराधना करते हैं और शक्ति केन्द्र से प्रारम्भ कर, सुषुम्ना के मार्ग से ज्ञानकेन्द्र तक श्वास को ले जाते हैं, तो इसका अर्थ है कि हम नीचे से ऊपर आरोहण कर रहे हैं। तलहटी से शिखर की ओर चढ़ रहे हैं। उस स्थिति में वृत्तियों का मुंह बदल जाता है। वे ऊर्ध्वमुखी हो जाती हैं। वुद्धि जो नीचे की ओर मुंह कर लटक रही थी. वह भी ऊपर की ओर मुंह कर लेती है। हमारी सारी वासनाएं बुद्धि और वृत्तियों के औंधे मुंह का सहारा पाकर पनप रही थीं। जब बुद्धि का मुंह बदल गया, वृत्तियों का मुंह बदल गया, तब बेचारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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