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________________ की समाधि टूट जाएगी। हमारे पैर भी उतने ही पवित्र हैं जितना पवित्र है हमारा सिर । हम पैरों को अपवित्र क्यों मानें ? हमारी गति का माध्यम क्या है ? गति का एकमात्र माध्यम है पैरों के पंजे । यदि पंजे नहीं टिकते हैं तो गति नहीं हो सकती । अर्हत् की आराधना पैरों पर भी की जाती है। जिस प्रकार पैर गति देने वाले हैं उसी प्रकार अर्हत समूची अध्यात्मयात्रा को गति देने वाले हैं । अर्हत् मार्ग हैं । अर्हत् पैर हैं । अर्हत् गति हैं और गति को बढ़ाने वाले हैं। महामंत्र : ४५ नमस्कार महामंत्र में समूचा मार्ग समाया हुआ है। मोक्ष मार्ग के चार चरण हैं-सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन, सम्यग् चारित्र और सम्यग् तप । अर्हत् इस चतुष्टयी के समन्वत रूप हैं । वे मार्ग हैं । अर्हत् का स्वरूप है- -अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त चारित्र अर्थात् अनन्त आनन्द और अनन्त शक्ति । चारित्र और आनन्द एक हैं । साधना - काल में जो चारित्र होता है वह सिद्धि-व -काल में आनन्द बन जाता है। दोनों में कोई अन्तर नहीं है । यही है अर्हत् का स्वरूप और यही है मोक्ष का मार्ग। इस नमस्कार महामंत्र में मार्ग का रहस्य छिपा हुआ है । हमारी अध्यात्म - यात्रा का समूचा मार्ग छिपा हुआ है। यह मंत्र मार्गदाता है, इसलिए यह महामंत्र की कोटि में आता है। नमस्कार मंत्र का महामंत्र होने का तीसरा हेतु है— दुःखमुक्ति का सामर्थ्य । आदमी का सारा पुरुषार्थ दुःख को मिटाने और सुख को पाने के लिए होता है । जितना पुरुषार्थ, जितनी प्रवृत्ति, जितनी चेष्टा और जितनी सक्रियता है, वह दो बातों से जुड़ी हुई है। पहली बात है दुःख को मिटाना और दूसरी बात है सुख प्राप्त करना । कल-कारखाने चलाने वाले से पूछा जाता है कि इतना श्रम क्यों ? वह कहता है - दुःख कट जाए। अपना दुःख भी कटे और दुनिया का दुःख भी कटे । कृषक को पूछा जाता है- खेती क्यों करते हो ? वह कहता है — भूख का दुःख मिटे । लोगों को अनाज मिले। उनका भी दुःख कट जाए। प्रत्येक प्रवृत्ति के पीछे ये दो हेतु होते हैं । —दुःख का उच्छेद और सुख की उपलब्धि, दुःख की निवृत्ति और सुख की प्राप्ति । किन्तु नमस्कार महामंत्र हमारी दुःख-सुख की सारी कल्पना को ही बदल देता है । जब हम इस महामंत्र के परिपार्श्व में जाते हैं, तब मनःस्थति कुछ और ही होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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