________________
४० : एसो पंच णमोक्कारो
५. महामंत्र
यह इसलिए महामंत्र है कि १. इससे अधोमुखी बुद्धि ऊर्ध्वमुखी होती है। २. तृप्ति नहीं, इच्छा का अभाव होता है। ३. सुख-दुःख की कल्पना में परिवर्तन होता है। ४. मार्ग उपलब्ध होता है। ५. चेतना, आनन्द और शक्ति का समन्वित विकास होता है।
हम कुछ दिनों से एक महासागर में अवगाहन कर रहे हैं, उसमें डुबकियां ले रहे हैं। यह सागर ही नहीं महासागर है। कितनी ही डुबकियां लें, कितना ही अवगाहन करें, इसका आर-पार पाना बहुत ही कठिन है। इसकी गहराई को मापना असंभव है। इसकी गहराई समूचे श्रुतसागर की गहराई है। कहा जाता है--नमस्कार महामंत्र चौदह पूर्वो का सार है। विश्व की सारी शाब्दिक विशिष्टता, ज्ञानराशि चौदह पूर्वो में समा जाती है। इतने बड़े समुद्र का अवगाहन करना कोई बड़ी बात नहीं है। इसलिए इस महासागर को महामंत्र कहा जाता है। यह मंत्र ही नहीं, महामंत्र है। यह महामंत्र क्यों है, इसे समझना है। नमस्कार मंत्र महामंत्र इसलिए है कि यह आत्मा का जागरण करता है। हमारी अध्यात्म यात्रा इससे संपन्न होती है | यह किसी कामनापूर्ति का मंत्र नहीं है। कामनापूर्ति के अनेक प्रकार के मंत्र होते हैं, जैसे—सरस्वती मंत्र, लक्ष्मी मंत्र, रोग निवारण मंत्र, सर्पदंश मुक्ति मंत्र आदि। जिस प्रकार बीमारियों के लिए औषधियों का निर्माण हुआ, वैसे ही रोग निवारण के लिए मंत्रों की संरचना हुई। जितनी बीमारियां उतनी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org