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महामंत्र : ४१
ही औषधियां। जितने प्रकार के कामना के स्रोत हैं, उतने ही मंत्र हैं। नमस्कार महामंत्र कामनापूर्ति का मंत्र नहीं है। इच्छापूर्ति का मंत्र नहीं है, किन्तु यह वह मंत्र है, जो कामना को समाप्त कर सकता है, इच्छा को मिटा सकता है। बहुत बड़ा अन्तर है। एक मंत्र होता है, कामना की पूर्ति करने वाला और एक मंत्र होता है, कामना मिटाने वाला । एक मंत्र होता है, इच्छा की पूर्ति करने वाला और एक मंत्र होता है, इच्छा को मिटाने वाला। दोनों में बहुत बड़ा अन्तर है। कामनापूर्ति और इच्छापूर्ति का स्तर बहुत नीचे रह जाता है। जब मनुष्य की ऊर्ध्व चेतना जागृत होती है तब उसे यह स्पष्ट ज्ञात हो जाता है कि संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि वही है, जिससे कामना और इच्छा का अभाव हो सके। कामना की पूर्ति और कामना का अभाव-दो बातें हैं। दोनों में बहुत बड़ी दूरी है।
मुझे एक कहानी याद आ रही है। बहुत ही मार्मिक है। एक व्यक्ति संन्यासी के पास जाकर बोला --- 'बाबा.! बहुत गरीब हूं, कूछ दो।'
संन्यासी ने कहा- 'मैं अकिंचन हूं, तुम्हें क्या दे सकता हूं ? मेरे पास अब कुछ भी नहीं है।' ___ लोग उन्हीं से मांगते हैं जिनके पास कुछ भी नहीं है। लोग उन्हीं के पीछे पड़ते है जो अकिंचन होते हैं। दुनिया की प्रकृति ही ऐसी है कि मनुष्य उनके पास नहीं जाते जिनके पास होता है, उनके पास जाते हैं जिनके पास नहीं होता।
संन्यासी ने बहुत नकारा, पर वह नहीं माना। तब बाबा ने कहा'जाओ नदी के किनारे एक पारस का टुकड़ा है, उसे ले जाओ। मैंने उसे फेंका है। उस टुकड़े से लोहा सोना बनता है।'
वह दौड़ा-दौड़ा नदी के किनारे गया। पारस का टुकड़ा उठा लाया। बाबा को नमस्कार कर घर की ओर चला। सौ कदम गया होगा कि मन में विकल्प उठा और वह उन्हीं पैरों संन्यासी के पास आकर बोला---'बाबा ! यह लो तुम्हारा पारस । मुझे नहीं चाहिए ।' संन्यासी ने पूछा- 'क्यों ?' यह कैसा परिवर्तन ! जो धन के लिए ललचा रहा था, वह पारस जैसे महाधन को ठुकरा रहा है, धन के महास्रोत को ठुकरा रहा है। क्या हो गया दो-चार क्षणों में ही ! उसने कहा- 'बाबा ! मुझे वह चाहिए, जिसे पाकर तुमने पारस को ठुकराया है। पारस से भी वह कीमती है, वह मुझे
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