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- मंत्र का साक्षात्कार : ३७
अपना अर्हत् प्राप्त होता है, जिस व्यक्ति का अर्हत् के साथ तादात्म्य स्थापित हो जाता है, एकता स्थापित हो जाती है, वह व्यक्ति आधारहीन नहीं होता । उसे ऐसा आधार मिल जाता है, जहां सारे भय समाप्त हो जाते हैं । भय तब तक होता है जब तक ज्ञान की अनुभूति नहीं होती; शुद्ध चेतना की अनुभूति नहीं होती । भय तब तक होता है, जब तक दर्शन की अनुभूति नहीं होती, अपना अनुभव नहीं होता । भय तब तक होता है जब तक मूर्च्छा नहीं टूटती, अपना आनन्द उपलब्ध नहीं होता । पदार्थ का आनन्द जब तक उपलब्ध होता है तब तक भय बना रहता है । भय तब तक होता है जब तक हमें अपनी शक्ति का भान नहीं होता, शक्ति पर विश्वास नहीं होता । अर्हत् का अर्थ है —— अपना ज्ञान, अपना दर्शन अपना आनन्द और अपनी शक्ति। पराया कुछ भी नहीं, सब कुछ अपना । उस दुकानदार को हमेशा भय रहता है, जो उधार ली हुई धनराशि से अपना व्यापार चलाता है । जो अपनी धनराशि से अपना व्यापार चलाता है उसे कोई भय नहीं होता, कोई खतरा नहीं होता । अर्हत् अपने ज्ञान, दर्शन और शक्ति की चतुष्टयी का नाम है । जब अर्हत् की चेतना जाग जाती है फिर भय समाप्त हो जाता है । सर्वत्र अभय की चेतना जाग जाती है ।
' णमो अरहंताणं' है अर्हत के प्रति नमन, अर्हत के प्रति समर्पण, अर्हत के साथ तादात्म्य, अर्हत् के साथ एकता की अनुभूति । यह अनुभूति अभय पैदा करती है । उसका सहारा लेकर हम निर्विकल्प स्थिति में पहुंचते हैं, तब भी हमें कोई खतरा नहीं होता। लोग यह बहुत बड़ा खतरा मानते हैं कि जब निर्विकल्प स्थिति में जाते हैं तब सारी कल्पनाएं, सारे विकल्प, सारी योजनाएं छूट जाती हैं। बहुत बड़ा खतरा लगता है । शरीर छूट जाता है, शरीर के प्रति आसक्ति छूट जाती है, पदार्थ छूट जाता है । व्यवहार में लोग समझते हैं कि आदमी निकम्मा हो गया। अब यह हमारे काम का नहीं रहा । बहुत बड़ा भय लगता है, खतरा लगता है । किन्तु जिस व्यक्त को एक क्षण के लिए भी निर्विकल्प दशा या निर्विकल्प चेतना का अनुभव हो जाता है, फिर वह उस स्थिति से कभी मुड़ नहीं सकता। वहां पहुंचने वाला व्यक्ति यह अनुभव करता है— यह अपूर्व आनन्द कहां से बरस रहा है। आदमी को खाने से आनन्द मिलता है, रूप देखने से आनन्द मिलता है, संगीत सुनने से आनन्द मिलता है, अच्छे स्पर्श से आनन्द मिलता है । जब
अच्छा
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