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३४ : एसो पंच णमोक्कारो
या जपने में कहीं कोई त्रुटि रही है। तीनों में से किसी-न-किसी की भूल अवश्य ही होनी चाहिए। मंत्रद्रष्टा ऋषि की भूल हो, मंत्रदाता गुरु की भूल हो या मंत्र जपने वाले व्यक्ति की भूल होः–तीनों में से एक की भूल अवश्य ही रही है। ___ मंत्रद्रष्टा ऋषि ने भूल नहीं की, क्योंकि उन्होंने बहुत गहरे में जाकर, बहुत सूक्ष्म में जाकर मंत्रों का निर्माण किया। मंत्रस्रष्टा में प्रकृति का पूरा ज्ञान, पौद्गलिक परिवर्तनों का पूरा ज्ञान और मात्रिका का पूरा ज्ञान होना आवश्यक है। जब यह होता है तब कोई मुनि मंत्रस्रष्टा बनता है, मंत्रों का निर्माण करता है। अन्यथा उसका कोई मंत्र नहीं बन सकता। ऐसे व्यक्ति की भूल संभव नहीं है। अब भूल की ज्यादा संभावना दो व्यक्तियों की रह जाती है—मंत्रदाता की भूल या मंत्र जपने वाले की भूल | इसकी चर्चा में जाना अपेक्षित नहीं है। एक बात स्पष्ट ध्यान में रहनी चाहिए कि मंत्र का जप करने वाला साधक ध्वनि को ही मंत्र की समाप्ति न मान बैठे। वह अगली भूमिकाओं को प्राप्त करने का प्रयत्न करे। केवल तलघर में ही न बैठा रहे । मकान की ऊपरी मंजिलों तक जाने का प्रयास करे। केवल तलहटी पर ही न रुके; शिखर पर चढ़ने का प्रयत्न करे। जब हमारा ऊर्ध्व
आरोहण होगा तब सारे पर्याय अपने-आप उद्घाटित होते चले जाएंगे। जो दिशाएं बंद हैं, जो दरवाजे और खिड़कियां बंद हैं, सव अपने आप खुलती चली जाएंगी। हमें तलहटी से चलना होगा। तलहटी को पार कर हम शिखर तक पहुंच सकते हैं। शक्तिकेन्द्र है तलहटी और ज्ञानकेन्द्र है शिखर | इससे ऊंचा कोई दूसरा शिखर नहीं है। हिमालय की यह सबसे ऊंची चोटी है। हमें शक्तिकेन्द्र से यात्रा आरम्भ करनी है और ज्ञानकेन्द्र तक पहुंचना है। लगता है कि यात्रा बहुत छोटी है, केवल एक-दो फुट की यात्रा। शक्तिकेन्द्र से ज्ञानकेन्द्र की बड़ी दूरी नहीं है। थोड़ी दूरी है। एक-दो डग भरने की जरूरत । यात्रा सम्पन्न । यह छोटी यात्रा। छोटा भी कभी-कभी बड़ा खतरनाक होता है। बड़ा जितना खतरनाक नहीं होता, उतना छोटा खतरनाक होता है। कभी-कभी छोटी बात इतनी टेढ़ी होती है कि बड़ी बात उतनी टेढ़ी नहीं होती। अणु का विस्फोट कितना टेढ़ा होता है। दो-चार मन के पत्थर को फोड़ना उतना टेढ़ा नहीं है। एक शिल्पी हथौड़ा लेकर बैठता है और बड़े से बड़े पत्थर के टुकड़े-टुकड़े कर डालता है। आप
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