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________________ ३२ : एसो पंच णमोक्कारो . अग्नि चूल्हे में है और शब्द हमारे मुंह में है। वहां भेद होता है। जब अन्तर्जल्प में हम पहुंचते हैं तब वहां शब्द और अर्थ में भेद और अभेद दोनों हो जाते हैं। न पूरा भेद होता है और न पूरा अभेद होता है। वहां भेदाभेदात्मक स्थिति का निर्माण हो जाता है। उस स्थिति में अग्नि शब्द के उच्चारण के साथ दाह की क्रिया भी शुरू हो सकती है। दीपक राग जब गायी जाती है, दीये जल जाते हैं, मेघ राग गाने पर मेघ बरसने लग जाते हैं। शब्द और अर्थ की दूरी कम हो जाती है, समाप्त हो जाती है। अन्तर्जल्प की स्थिति में जो उच्चारण होता है, वहां पर घटना घटित होने लग जाती है। जैसे ही अग्नि का उच्चारण किया, दाह की क्रिया शुरू हो जाएगी, जलन की क्रिया शुरू हो जाएगी। पदार्थ जलने लग जाएगा। यह अनुग्रह और निग्रह क्या है ? यह वरदान और अभिशाप क्या है ? मंत्रविद् अनुग्रह भी करना जानता है और निग्रह भी करना जानता है। वह वरदान देना भी जानता है और अभिशाप देना भी जानता है। जो व्यक्ति इस स्थिति तक पहुंच जाता है, उसके मुंह से जो भी शब्द निकला, वह शब्द अर्थ की दूरी को समाप्त कर अर्थ की घटना को घटित करने लग जाता है। वही क्रिया होने लग जाती है। 'तथास्तु' कहने की जरूरत है। 'तथास्तु' कहते ही जलाना है तो सामने वाला व्यक्ति जलने लग जाएगा। किसी को मिटाना है तो वह मिटने लग जाएगा, समाप्त होने लग जाएगा। प्राचीन घटना है। वैश्यायन बाल-तपस्वी ने आजीवक संप्रदाय के प्रवर्तक गोशालक पर तेजोलेश्या का प्रयोग किया। उसके मुंह से आग के गोले निकलने लगे और गोशालक का शरीर जलने लगा। महावीर ने देखा। गोशालक उनके साथ था। उन्होंने तत्काल शीतल लेश्या का प्रयोग किया। अग्नि शांत हो गई। तेजोलेश्या प्रतिहत हो गई। अन्तर्जल्प की स्थिति में शब्द और अर्थ की दूरी समाप्त हो जाती है। तीसरी स्थिति है अभेद की। वहां शब्द बिलकुल छूट जाता है, केवल अर्थ रह जाता है। मंत्रशास्त्रीय भाषा में पहली और दूसरी स्थिति को 'मध्यमा' कहा जाता है और इस तीसरी स्थिति को ‘पश्यन्ती' कहते हैं। यहां शब्द छूट गया, अर्थ रह गया। ध्यान करने वाले व्यक्ति का अर्थ के साथ तादात्म्य जुड़ गया, एकीभाव हो गया। उस एकीभाव की स्थिति में ध्यान करने वाला और ध्येय दो नहीं होते, वह व्यक्ति स्वयं ध्येय के रूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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