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________________ मंत्र का साक्षात्कार : ३१ को ध्यान तक पहुंचाना है। जप और ध्यान के भेद को समाप्त करना है। यह जप ही नहीं है। इसका नाम है-शब्दगत-ध्यान, शब्द के आलम्बन से किया जाने वाला ध्यान । ___ ध्यान के दो प्रकार हैं-भेद ध्यान और अभेद ध्यान । जहां भेद ध्यान है वहां ध्यान करने वाले व्यक्ति का शब्द के साथ मात्र संबंध होता है। ध्यान करने वाला व्यक्ति ‘णमो अरहंताणं' शब्द का उच्चारण करता है तो बोलने वाले का ध्वनित होने वाले शब्द के साथ यह संबंध स्थापित हो जाता हैं कि अमुक व्यक्ति ने ‘णमो अरहंताणं' यह शब्द बोला है। किन्तु दोनों में तादात्म्य स्थापित नहीं होता। दोनों का भेद समाप्त नहीं होता। शब्द अलग रहता है। दोनों के बीच दूरी बनी रहती है। जब यह भेद आगे की यात्रा कर अभेद तक पहुंच जाता है तब शब्द समाप्त हो जाता है। ध्यान करने वाले व्यक्ति का संबंध उस शब्द के अर्थ से जुड़ जाता है। ‘णमो अरहंताणं' का अर्थ और ध्यान करने वाले व्यक्ति में एकीभाव स्थापित हो जाता है। दोनों में तादात्म्य स्थापित हो जाता है। फिर ‘णमो अरहंताणं' का ध्यान करने वाला और अर्हत् दो नहीं रहते, एक हो जाते हैं। अर्हत् की दूरी समाप्त हो जाती है। हमारा अर्हत् उसमें लीन हो जाता है और वह प्रकट हो जाता है। हमें इस प्रक्रिया को समझना है कि शब्द से अशब्द तक कैसे पहुंचें ? इस प्रक्रिया को समझे बिना निर्विकल्प तक पहुंचने का हमारा स्वप्न पूरा नहीं हो सकता। ___मंत्रशास्त्र के तीन स्तम्भ हैं जल्प, संजल्प और विमर्श। 'णमो अरहंताणं'--यह जल्प है। इसे मंत्रशास्त्रीय भाषा में बैखरी कहा जाता है। जब ‘णमो अरहंताणं' स्थूल उच्चारण से छूटकर मानसिक उच्चारण बन जाता है, मन में पहुंच जाता है, दूसरों को सुनाई नहीं देता, होंठ भी नहीं हिलते, उच्चारण के जितने स्थान हैं उनमें कोई प्रकंपन नहीं होता, उनमें कोई छेदन नहीं होता, केवल मन की धारणा के साथ ‘णमो अरहंताणं', 'णमो अरहताणं' बार-बार प्रकट होता रहता है, वह है संजल्प—अन्तर्जल्प। जल्प छूट गया। उच्चारण छूट गया। अंतर्वाणी बन गई। मौन हो गया, किन्तु अन्तर में वह चक्राकार रूप में चल रहा है। जल्प में शब्द और अर्थ का भेद होता है। शब्द अलग, अर्थ अलग। अग्नि शब्द अलग और अग्नि अर्थ अलग। जो अग्नि जलाती है, जो अग्नि प्रकाश देती है, जो अग्नि ताप देती है. वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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