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________________ ३० : एसो पंच णमोक्कारो अर्हत् है, वहां ममकार नहीं हो सकता। ममकार पदार्थ के प्रति होता है। अर्हत् चेतना का पिंड है, चेतना का स्वरूप है। चेतना के प्रति कोई ममकार नहीं हो सकता। ममकार पदार्थ के प्रति होता है। जहां चेतना का अनुभव जागता है, एक क्षण-भर के लिए भी चेतना की लौ का अनुभव होता है, वहां ममकार विलीन हो जाता है। पदार्थ का आकर्षण छुट जाता है। पदार्थ के पिंजड़े में जकड़ा हुआ आदमी अपने आपको स्वतंत्र अनुभव करता है। ‘णमो अरहंताणं'—यह अहंकार और ममकार को विलीन करने वाला परम औषध है। यह एक मंत्र है। इसका जप किया जाता है। मंत्र का अर्थ होता है-गुप्त भाषा, गुप्त बात। मंत्र शब्द मंतु धातु से बना है। इसका अर्थ है-----गुप्त बोलना, गुप्त अनुभव करना। यह गुप्तवाद है, रहस्यवाद है। जब तक रहस्य को नहीं समझा जाता, तब तक मंत्र का कोई अर्थ नहीं होता। जब तक चाबी हाथ नहीं लगती तब तक ताला नहीं खुलता। जब तक मंत्र की यह गढ़ चाबी हस्तगत नहीं होती तब तक मंत्र के द्वारा अहंकार और ममकार का विलय नहीं किया जा सकता। यह सप्ताक्षरी मंत्र 'णमो अरहंताणं' हमारे सामने है। एक-एक अक्षर हमारे सामने है। न जाने कितने लोग इस मंत्र का जप जीवन-भर करते हैं। वे अनुभव करते हैं कि जीवन-भर जप करने पर भी कषाय क्षीण नहीं हुए, अहंकार और ममकार क्षीण नहीं हुए। क्या केवल ध्वनि मात्र से, केवल उच्चारण मात्र से वैसा हो जाएगा ? वह सब हो जाएगा, जो होना चाहिए ? मुझे यह संभव नहीं लगता। ध्वनि-विज्ञान ने यह बताया कि श्रव्य ध्वनि के द्वारा बहुत बड़ी घटना घटित नहीं होती। एक व्यक्ति तीन वर्ष तक श्रव्य ध्वनि करता रहे तो मात्र इतनी-सी ऊर्जा पैदा होती है कि एक प्याला पानी गर्म किया जा सके। तो क्या इस स्थूल उच्चारण के द्वारा कषाय क्षीण हो जाएगा, जो इतने सूक्ष्म में बैठा है ? क्या वह तप जाएगा ? पिघल जाएगा ? अपना स्थान छोड़ देगा ? यह संभव नहीं लगता। यह कोरा उपचार है। यह हमें लक्ष्य तक नहीं पहुंचा पाएगा। इस बिन्दु पर पहुंचकर हमें सिंहावलोकन करना चाहिए। केवल उच्चारण ही पर्याप्त नहीं है। केवल ध्वनिया जप ही पर्याप्त नहीं है। कोरा स्थूल जप लाभप्रद नहीं होता जब तक वह जाप ध्यान में नहीं बदल जाएगा तब तक उसके द्वारा वह प्राप्त नहीं होगा जो होना चाहिए। तब तक मंत्र का चमत्कार हमारे सामने नहीं आएगा। हमें जप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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