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४. मंत्र का साक्षात्कार
• संभेद-वाचक पद के साथ ध्याता का संबंध । • अभेद-वाच्य अर्थ के साथ ध्याता का एकीभाव । • तात्त्विक मंत्र निर्विकल्प होता है।
जल्प विकल्पात्मक। संजल्प से विकल्प क्षीण होते हैं, निर्विकल्पता की प्राप्ति।
विमर्श निर्विकल्प संवित् । इसमें अर्थ का साक्षात्कार । • यही अभेद प्रणिधान या तात्विक मंत्र। • दर्शन-केन्द्र पर मंत्र पहुंचने से राग-द्वेष की क्षीणता।
अनंत की अनुभूति तब तक नहीं हो सकती, जब तक कषाय क्षीण नहीं होता। जब तक हमारा मन रंग से रंगा हुआ होता है, हमारी चेतना रंगीन होती है तब तक अनन्त की अनुभूति नहीं हो सकती। कषाय के दो संवाहक हैं—अहंकार और ममकार । अहंकार और ममकार जब तक विलीन नहीं होते, तब तक हमारी सान्तता समाप्त नहीं होती। सान्तता समाप्त हुए बिना अनन्त की अनुभूति नहीं होती। अनन्त की अनुभूति के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है अहंकार और ममकार का विलय।। ___ 'णमो अरहंताणं'—इस मंत्र के द्वारा कषाय क्षीण होता है इसे हम प्रमाणित करें। ‘णमो' यह नमन है, समर्पण है। अपने पूरे व्यक्तित्व का समर्पण। इससे अहंकार विलीन हो जाता है। जहां नमन होता है वहां कोई अहंकार टिक नहीं सकता। अहंकार निःशेष और सर्वथा समाप्त । जहां
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