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२८ : एसो पंच णमोक्कारो
प्रभावित नहीं कर पाते, उसके मस्तिष्क में प्रवेश नहीं कर पाते। यह संभव
. मंत्र की साधना करने वाला व्यक्ति जानता है कि मंत्र की साधना से खतरा पैदा हो सकता है। यह अध्यात्म मंत्र की साधना की बात नहीं है। जो व्यक्ति और-और मंत्रों की साधना करते हैं, उनके समक्ष अनेक खतरे पैदा हो जाते हैं। इसलिए मंत्र-साधक सबसे पहले कवचीकरण करता है। वह अपने शरीर की सुरक्षा के लिए शरीर के एक-एक अवयव के लिए कवच बनाता है। वह वज्र पंजर बनाता है। एक-एक अवयव की प्रेक्षा करता है।
मंत्र की साधना करने वाला साधक ध्यान की मुद्रा में बैठ कर, शरीर की सुरक्षा के लिए कवच का निर्माण करने के लिए कहता है-भगवान् ऋषभ मेरे सिर की रक्षा करें। भगवान् अजित मेरे भाल की रक्षा करें। भगवान् संभव और अभिनन्दन मेरे दोनों कानों की रक्षा करें। इस प्रकार एक-एक अवयव की रक्षा का विन्यास कर वह साधक पूरे शरीर की रक्षा करता है, कवच तैयार करता है, वज्रपंजर बना लेता है। इस प्रकार वह सुरक्षित होकर मंत्र-साधना करने बैठता है, जिससे कि बाहर का कोई असर न हो, खतरा न हो। ___नमस्कार महामंत्र का वज्रपंजर है। जैसे अन्यान्य मंत्रों की साधना करने वाला कवच बनाता है, वैसे ही अध्यात्म मंत्र की साधना करने वाला ध्यान के द्वारा अपने शरीर की पूरी सुरक्षा कर लेता है। फिर बाहर के बुरे विचारों के परमाणु भीतर प्रवेश नहीं पा सकते। इस तथ्य को समझ लेने के बाद यह बहुत स्पष्ट हो जाता है कि कुछ मंत्र ऐहिक सिद्धि देने वाले हैं और कुछ मंत्र अध्यात्म जागरण में सहायक बनते हैं। हमने अध्यात्म जागरण और अध्यात्म की यात्रा के लिए जिस मंत्र का चुनाव किया है- णमो अरहंताणं' वह इतना शक्तिशाली और तेजस्वी मंत्र है कि उसके द्वारा आध्यात्मिक उपलब्धियों के साथ-साथ ऐहिक उपलब्धियां भी होती हैं। इस मंत्र की साधना के द्वारा अध्यात्म का समूचा मार्ग आलोकित होता है और हमारी यात्रा निर्विघ्न रूप से सम्पन्न होती है।
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