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________________ मंत्र का प्रयोजन : २७ जाता है, मन बेचैन हो जाता है। घबराने की बात नहीं है। आपके पास ऐसा उपाय है, जिससे चिन्ता, शोक, बेचैनी—सारे समाप्त हो जाते हैं। वैज्ञानिक एक ऐसी टिकिया बनाने के लिए सोच रहे हैं, जिसके सेवन से सुख कभी खण्डित नहीं होता। चाहे कोई स्वजन मर जाए, दुर्घटना हो जाये, धन चला जाये, सत्ता चली जाये, सुख में कोई अन्तर नहीं आता। शरीरशास्त्रियों ने बताया कि मनुष्य के शरीर में दो प्रकार की ग्रन्थियां हैं। एक है सुख की ग्रन्थि और दूसरी है दुःख की ग्रन्थि । दोनों एक-दूसरे से सटी हुई हैं। यदि सुख की ग्रन्थि सक्रिय हो जाए तो सुख-ही-सुख है, चाहे परिस्थिति कुछ भी क्यों न हो। और यदि अकस्मात् दुःख की ग्रन्थि सक्रिय हो जाए तो दुःख-ही-दुःख है, चाहे फिर विश्व का साम्राज्य ही क्यों न मिल जाए। बड़ा खतरा है। सुख की ग्रन्थि को सक्रिय करने की प्रक्रिया में यदि दुःख की ग्रन्थि सक्रिय हो जाए तो व्यक्ति अनन्त दुःख के सागर में डूब जाता है। फिर उबरने का उपाय कठिन है। हम इन औषधियों और ग्रन्थियों के चक्कर में न जाएं। ऐसा निरापद मार्ग खोजें, जहां खतरा न हो। वह मार्ग है-मंत्र साधना। मंत्रों के द्वारा सभी प्रकार की स्थितियों से निपटा जा सकता है। सारी समस्याएं हल हो सकती हैं। ___ आज की सबसे बड़ी समस्या है--विचार प्रदूषण की। आज के वायुमंडल में इतने दूषित विचार बिखर रहे हैं कि जो आदमी बुरा विचार करना भी नहीं चाहता, वह बुरा विचार कर बैठता है। बुरे विचार बुरे संस्कारों के कारण पैदा होते हैं, यह एक सचाई है। किन्तु यह पूर्ण सत्य नहीं है। वायुमंडल में फैले हुए बुरे विचारों के परमाणु जब सिर से टकराते हैं तब भी बुरे विचार पैदा हो जाते हैं। आदमी अपने बुरे संस्कारों का शोधन करने के लिए तपस्या करता है। वह चाहता है कि बुरे विचार न आएं किन्तु बाहर के वायुमंडल को प्रकंपित करने वाले ये बुरे विचारों के परमाणु उसके विचारों को भी बुरा बना देते हैं। यह एक सद्यस्क समस्या है। मंत्र-साधना के द्वारा इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। मंत्र-साधना के द्वारा व्यक्ति अपनी ऊर्जा को इतना प्रबल बना देता है, आभामंडल को इतना शक्तिशाली बना देता है, अपने लेश्या के कवच को इतना सक्षम बना देता है कि आने वाले बुरे विचारों के परमाणु उसको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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