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२६ : एसो पंच णमोक्कारो
मंत्र से उत्पन्न होने वाली ध्वनि-तरंगों के द्वारा, मंत्र के साथ घुलने वाली भावना के द्वारा, संकल्पशक्ति और मंत्र के साथ होने वाली गहन श्रद्धा के द्वारा तथा मंत्र के साथ होने वाले इष्ट के साक्षात्कार के द्वारा कषाय नष्ट होते हैं। __'णमो अरहंताणं' की चार चरणों में आराधना की जाती है। पहला चरण है----अक्षर ध्यान। प्रत्येक अक्षर का ध्यान । ज्ञानकेन्द्र में श्वेत वर्ण के साथ एक-एक अक्षर का ध्यान। दूसरा चरण है --पूरे पद का ध्यान । तीसरा चरण है-पूरे पद ‘णमो अरहंताणं' के अर्थ का ध्यान। इस पद का अर्थ है-अर्हत् को नमस्कार । अर्हत् का अर्थ है-पूर्ण आत्मा। जब तक अपूर्णता है तब तक अर्हत् स्वभाव प्रकट नहीं होता। अज्ञान एक अपूर्णता है। शक्तिहीनता एक अपूर्णता है। सुख-दुःख की अनुभूति एक अपूर्णता है। दर्शन और चारित्र की न्यूनता एक अपूर्णता है। जब तक ये अपूर्णताएं हैं तब तक अर्हत् तत्त्व का विकास नहीं हो सकता। हमने अर्हत् स्वरूप का ध्यान नहीं किया, इसलिए अपूर्णताएं चल रही हैं। तीसरा चरण है-अर्हत् का ध्यान-ज्ञान की पूर्णता का ध्यान, दर्शन की पूर्णता का ध्यान, शक्ति की पूर्णता का ध्यान और आनन्द की पूर्णता का ध्यान । चौथा चरण है-अपने अर्हत का ध्यान | अर्हत कोई दूसरा व्यक्ति नहीं है, 'मैं स्वयं अर्हत् हूं'- इस स्वरूप का ध्यान |
मैं स्वयं अर्हत् हूं, मुझमें अनन्त ज्ञान विद्यमान है। मैं स्वयं अर्हत् हूं, मुझमें अनन्त दर्शन विद्यमान है। मैं स्वयं अर्हत् हूं, मुझमें अनन्त शक्ति विद्यमान है। मैं स्वयं अर्हत् हूं, मुझमें अनन्त आनन्द विद्यमान है।
हमने इन चारों चरणों का ध्यान किया। हम बाहर से चले, भीतर तक पहुंच गए। हम दूसरे से चले और अपने तक पहुंच गए। हम सालम्बन से चले और निरालम्बन तक पहुंच गए। ‘णमो अरहंताणं' ---इस पद के द्वारा हमने अपने को समझने और अपने स्वरूप को प्रकट करने का प्रयत्न किया।
व्यक्ति के मन में अकारण ही चिन्ता जाग जाती है, मन शोक से भर
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