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मंत्र का प्रयोजन : २५
जाता है। प्रत्येक वर्ण का अपना प्रभाव होता है, अपना पृथक् रसायन होता है। वह रसायन हमारे शरीर को प्रभावित करता है । मन्त्रशास्त्र ने वर्णमाला का एक पूरा व्याकरण बनाया। प्रत्येक अक्षर का व्याकरण है। प्रत्येक अक्षर पर विभिन्न दृष्टिकोणों से विचार किया गया है। __ आध्यात्मिक जागरण की पहली बात है—सुषुम्ना का जागरण। हमारी प्राणधारा के तीन प्रवाह हैं-इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना-बायां स्वर, दायां स्वर और मध्य का स्वर । बायें को इड़ा, दायें को पिंगला और मध्य को सुषुम्ना कहा जाता है। सामान्यतः हमारा स्वर दायां-बायां चलता है, मध्य का स्वर कम चलता है। जब मध्य का स्वर चलता है, सुषम्ना चलती है तब मन शांत होता है, विकल्प भी कम हो जाते हैं। जब दायां-बांयां स्वर चलता है तब मनुष्य की वृत्ति बहिर्मुखी होती है। इन स्वरों में कामनाएं बढ़ती हैं, वासनाएं उभरती हैं। जब सुषुम्ना का उद्घाटन होता है तब मनुष्य के लिए अन्तर्मुखी, निष्काम और निर्विकार होने का द्वार खुलता है। प्राण की धारा जब सुषुम्ना में प्रवाहित होने लगती है तब आध्यात्मिक जागरण प्रारंभ होता है। अध्यात्म जागरण का पहला बिन्दु या उस यात्रापथ का पहला चरण है---सुषुम्ना में प्राणधारा का प्रवेश । मंत्र के द्वारा ऐसा किया जा सकता है। मंत्र के द्वारा हम ऐसी सूक्ष्म ध्वनि-तरंगें पैदा करते हैं कि सुषुम्ना के द्वार खुल जाते हैं और व्यक्ति में आध्यात्मिक जागृति की किरण फूट पड़ती है। ___ सुषुम्ना की यात्रा अध्यात्म की यात्रा है—यह शरीरशास्त्रीय दृष्टिकोण है। दूसरा पहलू है- कषायों का उपशमन । जब कषाय क्षीण या उपशांत होते हैं तब अध्यात्म की यात्रा प्रारम्भ होती है। प्रश्न होता है कि क्या मंत्रों के द्वारा कषाय क्षीण होते हैं ? क्या मंत्रों के द्वारा तनाव कम होता है ? क्या मंत्रों के द्वारा भय, घृणा, वासना, विकार मिटते हैं ? हां, मिटते हैं। ‘णमो अरहंताणं'—इस सप्ताक्षरी मंत्र के जाप से कषाय क्षीण होते हैं। ‘णमो अरहंताणं' के जाप की चौसठ विधियां हैं। तैजस केन्द्र में इस मंत्र का ध्यान करने से क्रोध उपशांत होता है, क्षीण होता है। आनन्द केन्द्र में इस मंत्र का ध्यान करने से मान, अहंकार क्षीण होता है। विशुद्धि केन्द्र में इस मंत्र का ध्यान करने से माया क्षीण होती है। ताल केन्द्र में इसका ध्यान करने से लोभ क्षीण होता है। इस मंत्र के द्वारा सारे कषाय क्षीण होते हैं।
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