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२४ : एसो पंच णमोक्कारो
दो धाराएं हैं—काम और निष्काम । इन धाराओं पर मंत्र के द्वारा बहुत बड़ा प्रयोग किया जा सकता है। बहिर्मुखी व्यक्ति अन्तर्मुखी कैसे बन सकता है, यह एक प्रश्न है। कोई व्यक्ति हजार बार भी किसी को कहे-कामनाओं को छोड़ो, निर्विकार बनो, परमार्थी बनो, विषयों की निवृत्ति करो। वह व्यक्ति सुनता है, बनना चाहता है पर बन नहीं सकता। यह समस्या कैसे समाहित हो ? अन्तर तब आता है जब कोई आंतरिक घटना घटित होती है। आंतरिक घटना घटित हुए बिना केवल शब्द के स्पर्श मात्र से अन्तर की संभावना और परिकल्पना नहीं की जा सकती। उस आंतरिक घटना का नाम है--- रासायनिक परिवर्तन, जैविक-रासायनिक परिवर्तन । जब तक हमारे रसायनों में परिवर्तन नहीं होता, भीतर के स्रावों में परिवर्तन नहीं होता, ग्रन्थियों के हारमोन्स में परिवर्तन नहीं होता तब तक स्वभाव का परिवर्तन नहीं होता। मनुष्य-स्वभाव के परिवर्तन के लिए बहुत जरूरी है कि रसायनों का परिवर्तन हो, ग्रन्थियों के हारमोन्स का परिवर्तन हो। वह रासायनिक परिवर्तन औषधि के द्वारा भी होता है और मंत्र के द्वारा भी होता है। मन की दिशा को बदलने वाली औषधियों का आज प्रचुर प्रचार हो रहा है। आदमी एक गोली लेता है, मन शांत हो जाता है
और ऐसे लोक की यात्रा करता है जहां विभिन्न दृश्य सामने आते हैं। मनुष्य सोचता है कि इस अशांत विश्व में शांति का अनुभव करने के लिए ये दवाइयां उपयुक्त हैं। वह गोलियां खाता है। हमने इस बात की पहले चर्चा की है कि औषधियों से क्या-क्या होता है। औषधि से सिद्धि प्राप्त होती है। औषधि से पूर्वजन्म को देखा जा सकता है। औषधि के द्वारा सूक्ष्म चीजों को देखा जा सकता है। औषधि के द्वारा दूर की वस्तुओं को देखा जा सकता है, सूक्ष्म लोक की घटनाओं का साक्षात् किया जा सकता है। यह इसलिए होता है कि दवा के द्वारा रासायनिक परिवर्तन होता है और इस परिवर्तन के होने पर हम दूसरे जगत् में चले जाते हैं।
जैसे औषधि के द्वारा रासायनिक परिवर्तन होता है, वैसे ही मंत्र के द्वारा रासायनिक परिवर्तन होता है। प्रत्येक अक्षर का अपना रसायन है। एक अक्षर का उच्चारण किया और एक प्रकार का रसायन निर्मित हो गया। 'र' के उच्चारण से तापमान बढ़ जाता है और 'ह' के उच्चारण से तापमान घट जाता है। 'हं' के उच्चारण से लीवर प्रभावित होता है, वह सक्रिय हो
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