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२२ : एसो पंच णमोक्कारो
है—तालोद्घाटिनी। इसके द्वारा ताले बिना चाबी घुमाए ही खुल जाते हैं। मैं ये दोनों विद्याएं तुम्हें देता हूं और तुम मुझे अपनी स्तंभिनी विद्या दो। यह विद्या दोनों विद्याओं से भारी है, मूल्यवान् है।
इस प्रकार के अनेक प्रयोजन हैं मंत्रविद्या के। मंत्रशास्त्रों में इन प्रयोजनों को छह भागों में बांटा गया है। ऐसा लगता है कि यह विभाजन मंत्रशास्त्र के प्रति, मंत्रों के प्रति भ्रांति का कारण बना है। जन-मानस में एक भ्रम फैल गया कि मंत्रों का अध्यात्म के लिए क्या उपयोग है ? अध्यात्म और मंत्र का संबंध ही क्या है ? कोई संबंध नहीं है। दोनों की दो भिन्न दिशाएं हैं। ऐसा इसलिए हुआ कि मंत्रों के छह प्रयोजन जब सामने
आए तब लोगों ने सोचा- 'जो मंत्रविद् होते हैं, वे किसी को मार देते हैं, किसी का उच्चाटन कर देते हैं, किसी को वश में कर लेते हैं। यह मंत्र विद्या अच्छी नहीं है। इस प्रकार यह गलत भावना मंत्रों के प्रति पैदा हो गई।
मंत्र एक शक्ति है। शक्ति का उपयोग अच्छे काम के लिए भी हो सकता है और बुरे काम के लिए भी हो सकता है। चाकू से ऑपरेशन भी होता है और चाकू से दूसरे का गला भी काटा जाता है। शक्ति शक्ति होती है। उसका अच्छा या बुरा प्रयोग करना प्रयोक्ता पर निर्भर करता है। शक्ति अपने आप में अच्छी या बरी नहीं होती।
मंत्र एक शक्ति है, ऊर्जा है। उस शक्ति के द्वारा अध्यात्म का दरवाजा बंद भी किया जा सकता है और खोला भी जा सकता है। अध्यात्म के जागरण में मंत्र का बहुत बड़ा योग हो सकता है। इस भ्रांति को मिटा दें कि मंत्र-प्रयोग के केवल छह ही प्रयोजन हैं। समय-समय पर मंत्रों के अनेक प्रयोजन सामने आए हैं। मंत्रों से चिकित्सा होती है। मंत्रों के द्वारा भयंकर बीमारियां नष्ट होती हैं। अभी कुछ समय पूर्व नागपुर में मंत्रों के द्वारा चिकित्सा करने का उपक्रम चलाया गया था। फिलिपाईन के कुछ व्यक्ति बिना ऑपरेशन किए, बिना चीड़-फाड़ किए, पेट से गांठ निकाल देते हैं। आज के वैज्ञानिक इस खोज में हैं कि भविष्य में ऑपरेशन करते समय
औजारों को काम में न लिया जाए किन्तु सूक्ष्म ध्वनि के द्वारा ऑपरेशन की क्रिया संपन्न कर दी जाए। मंत्र सूक्ष्म ध्वनि है। यह ध्वनितरंग है। ध्वनितरंगों का उपयोग आज अनेक क्षेत्रों में हो रहा है। हीरा कठोर धातु है। हीरे को हीरे से ही काटा जा सकता है, किन्तु आज सूक्ष्म ध्वनि से हीरे
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