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________________ मंत्र का प्रयोजन : २१ हम शब्द का, मन्त्र का, रूप का और शरीर का सहारा लेते हैं। हम अर्हत् का सहारा लेते हैं, जिससे कि हम अपने को देख सकें। यह देखने के लिए आलंबन है, न कि अपने दर्शन की यात्रा से दूर जाने के लिए। हमसे केवल अन्तर्यात्रा ही हो। हमारा यात्रा-पथ निर्विघ्न हो । हमारा पथ पूर्ण आलोकित हो। कहीं कोई अंधकार न आए। इस सारे उपक्रम के लिए वैसे ही दूसरे का सहारा लेते हैं जैसे आंख अपने आपको देखने के लिए दर्पण का सहारा लेती है। प्रश्न हो सकता है—क्या मन्त्र के द्वारा अपने आपको देखा जा सकता है ? क्या शब्द के द्वारा अपने आपको देखा जा सकता है ? आत्मा को देखा जा सकता है ? प्रश्न बहुत ही स्वाभाविक है। आत्मा को मंत्र और शब्द के द्वारा कैसे देखा जा सकता है ? आत्मा अ-शब्द है। शब्द की पहुंच वहां तक नहीं हो सकती। आत्मा अतयं है। तर्क वहां तक नहीं पहुंच पाता। आत्मा अनिर्वचनीय है। वाणी वहां तक नहीं पहुंच पाती। आत्मा शब्दातीत, तर्कातीत और वचनातीत है। ऐसी स्थिति में क्या शब्द, तर्क और वचन आत्म-साक्षात्कार में सहयोग कर सकते हैं ? क्या ये साधन सक्षम ___ इन प्रश्नों की समीक्षा में हमें मंत्र के प्रयोजनों पर विचार करना होगा। मन्त्र-शास्त्र ने मंत्र के प्रयोजनों का विवरण प्रस्तुत किया है। उसके मुख्यतः छह प्रयोजन निर्दिष्ट हैं—मारण, उच्चाटन, संपातन, विद्वेषण, मोहन और वशीकरण । मारने के लिए मंत्र का उपयोग किया जाता है। सम्मोहित करने के लिए मंत्र का उपयोग किया जाता है। उच्चाटन और विद्वेषण के लिए मंत्र का उपयोग किया जाता है। संतप्त करने के लिए मंत्र का उपयोग किया जाता है। ___ जम्बूकुमार ने आठ रमणियों के साथ विवाह किया। अपार धन दहेज में प्राप्त हुआ। पांच सौ चोर चोरी करने आए। माल एकत्रित किया। उसे उठाने लगे तो ज्ञात हुआ कि हाथ-पैर स्तंभित हो गए हैं। न हाथ उठता है और न पैर चलते हैं। चोरों का सरदार जम्बूकुमार के पास जाकर बोला--जम्बूकुमार ! मैंने तुम्हारी शक्ति देख ली। तुम बड़े मंत्रवादी हो। मैं तुम्हारे आगे नतमस्तक हूं। मेरे पास दो विद्याएं हैं। एक हैअवस्वापिनी। इसके द्वारा सबको नींद दिलाई जा सकती है। दूसरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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