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२० : एसो पंच णमोक्कारो
३. मंत्र का प्रयोजन
• मन की शक्ति का उद्दीपन
विचार-संप्रेषण
ग्रहण और संप्रेषण . मन की संवेदनशीलता का विकास
ऊर्जा की वृद्धि
दृष्टि में अंतर्मुखता का विकास . वीतरागता का विकास, कषाय की क्षीणता
प्रेक्षा-ध्यान की साधना का सूत्र है—आत्मा के द्वारा आत्मा को देखना, स्वयं के द्वारा स्वयं को देखना ! प्रश्न होता है-हम दूसरों को क्यों देखें ? अर्हत् को क्यों देखें ? आवश्यकता क्या है दूसरों को देखने की, जब हमें स्वयं को देखना है ? जब हम दूसरों को देखते हैं, तब प्रेक्षा-सूत्र से दूर चले जाते हैं, और कुछ घटित होता है। इस प्रश्न पर हमें विमर्श करना है। संस्कृत के कवि ने कहा है
गुणिनामपि निजरूपप्रतिपत्तिः, परत एव सम्भवति ।
स्वमहिमदर्शनमक्ष्णोर्मुकुरतले जायते यस्मात् । । गुणी मनुष्य भी अपने आपको समझने के लिए दूसरे का सहारा लेता है। वह दूसरे के द्वारा अपने को देखता है। आंख सबको देखती है, किन्तु अपने आपको देखने के लिए उसे दर्पण का सहारा लेना पड़ता है।
स्वयं को देखने के लिए कभी-कभी दूसरों का सहारा लेना पड़ता है।
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