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________________ १८ : एसो पंच णमोक्कारो निर्विचार तक पहुंचने की पद्धति है। मंत्र में पहला तत्त्व है— शब्द या ध्वनि । शब्द भाषात्मक होता है और ध्वनि झंकार रूप होती है, अव्यक्त होती है । शब्द का अर्थ के साथ कोई सीधा संबंध नहीं होता । शब्द और अर्थ में कुछ दूरी होती है । ध्वनि अर्थ के कुछ निकट चली जाती है। 'दूध' एक शब्द है। दूध कहने से पेट नहीं भरता । जहां हमारा शब्द होता है वहां दूध और दूध नाम के पदार्थ — इन दोनों में दूरी होती है। किन्तु जैसे-जैसे हमारी संकल्प-शक्ति दृढ़ होती है, भावना का प्रयोग होता है, ध्वनि सूक्ष्म होती चली जाती है, तब शब्द और अर्थ की दूरी कम होती चली जाती है। तब ऐसा होता है कि 'दूध' कहते ही दूध तैयार मिलता है । भारतीय साहित्य में तीन शब्द बहुलता से मिलते हैं – कल्पवृक्ष, कामधेनु और चिन्तामणि रत्न । ये तीनों शब्द इतने शक्तिशाली होते हैं कि जो मांगा वह तैयार । शब्द और अर्थ की सारी दूरी समाप्त | शब्द के साथ-साथ अर्थ की घटना घट जाती है । ऐसा संकल्प-शक्ति के द्वारा भी हो सकता है, होता है । हमारी संकल्प-शक्ति ही कल्पवृक्ष है । हमारी संकल्प-शक्ति ही कामधेनु है और हमारी संकल्प शक्ति ही चिन्तामणि रत्न है । ये तीनों कामनाओं की पूर्ति करते हैं । जो कामना को पूरा करे, वह कामधेनु । जो कल्पना को पूरा करे, वह कल्पवृक्ष और जो चिन्तन को पूरा करे, वह चिन्तामणि रत्न । ये सब हमारे संकल्प से भिन्न कुछ नहीं हैं । सब संकल्प ही है। संकल्प मंत्र का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। जहां शब्द ध्वनि और संकल्प-शक्ति तीनों का योग ' होता है वहां मंत्र की शक्ति जागृत हो जाती है, मंत्र का साक्षात्कार हो जाता है और मंत्र का देवता प्रकट हो जाता है । संकल्प-शक्ति के द्वारा जब आन्तरिक ज्योति का जागरण होता है, उस ज्योति का नाम ही है — देवता । जब हमारा शब्द ज्योति में बदल जाता है तब मंत्र का साक्षात्कार हो जाता है । मंत्र चैतन्य हो जाता है । मंत्र का चौथा महत्त्वपूर्ण तत्त्व है – श्रद्धा । श्रद्धा का अर्थ है— तीव्रतम आकर्षण । यदि मंत्र के प्रति हमारी कोई श्रद्धा नहीं है, कोई आकर्षण नहीं है, दृढ़ विश्वास नहीं है तो चाहे वर्ण का ठीक समायोजन हो, ठीक उच्चारण हो तो भी जो घटित होना चाहिए, वह घटित नहीं हो सकता । केवल श्रद्धा के बल पर जो घटित हो सकता है, वह श्रद्धा के बिना घटित नहीं हो सकता। पानी तरल है। जब वह जम जाता है, सघन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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