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________________ मंत्र क्या है ? : १५ शुरू किया कि कोई ऐसा यंत्र बनाया जाए, जो अतीत के महापुरुषों की भाषा के परमाणुओं को पकड़ सके। उसके आधार पर यह देखा जा सके कि उन-उन महापुरुषों ने क्या कहा था और आज उनके नाम से जो चल रहा है, वह कितना यथार्थ है और कितना अयथार्थ । उन महापुरुषों ने वही बात कही थी, जो आज प्रचलित है या दूसरी बात कही थी ? इसे परखा जा सके, इसकी कसौटी की जा सके। अभी तक वे पूरे सफल नहीं हुए हैं, किन्तु यह आज असम्भाव्य नहीं रहा है। जैन सिद्धान्तों की यह बात है कि मनुष्य जो सोचता है, उसके मनोवर्गणा के पुद्गल करोड़ों वर्षों तक आकाश में अपनी आकृतियां बनाए रख सकते हैं। यदि कोई साधन विकसित किया जा सके, यदि कोई ऐसा यंत्र बन सके तो उन आकृतियों को पकड़ा जा सकता है। यह सारा जगत् तरंगों से आन्दोलित है। विचारों की तरंगें, कर्म की तरंगें, भाषा और शब्द की तरंगें पूरे आकाश में व्याप्त हैं। व्यक्ति का मस्तिष्क और स्नायविक प्रणाली भी आन्दोलित हो रही है। इस स्थिति में मंत्र की उपयोगिता का आकलन किया जा सकता है। मंत्र क्या है और उसके द्वारा क्या किया जा सकता है, यह भी सोचने का अवसर मिलता है। मंत्र एक प्रतिरोधात्मक शक्ति है। मंत्र एक कवच है। मंत्र एक प्रकार की चिकित्सा है। संसार में होने वाले प्रकंपनों से कैसे बचा जा सकता है ? उनके प्रभावों को कैसे कम किया जा सकता है ? इन प्रश्नों का उत्तर है कि व्यक्ति प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास करे और मंत्र की भाषा में कहा जा सकता है कि कवचीकरण का विकास करे। प्राचीन काल में योद्धा कवच पहनकर ही रणभूमि में उतरते थे। उन कवचों के आधार पर योद्धा शत्रुओं के प्रहारों को झेलने में समर्थ हो जाते थे। मंत्र-साधना कवच बनाने की साधना है। इससे आने वाले प्रकंपनों के प्रहारों से बचा जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति के चारों ओर आभामंडल होता है, एक वलय होता है । अच्छा विचार होता है तो अच्छा आभामंडल बन जाता है। बुरा विचार - होता है तो बुरा आभामंडल बन जाता है। अच्छा परिणाम अच्छी लेश्या । बुरा परिणाम बुरी लेश्या। हम मंत्रशक्ति का उपयोग करें और शब्दों की ऐसी संयोजना करें कि ऊर्जा का आभामंडल बने। हम उस शब्द-विन्यास का उच्चारण करें। सूक्ष्म उच्चारण करें या सूक्ष्मातिसूक्ष्म उच्चारण करें। उससे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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