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________________ १४ : एसो पंच णमोक्कारो बम्बई जाना है। उसने यह मन की बात अपने मित्र को कही । दोनों प्रसंगों में शब्द का सहारा लिया गया है । इस दृष्टि से दोनों में कोई अन्तर नहीं है । एक मन की भाषा है और दूसरी बाहर की भाषा है । भाषा दोनों हैं । केवल जल्प और अन्तर्जल्प का अन्तर आया किंतु तात्त्विक अन्तर कुछ भी नहीं आया । यदि हम साधना के द्वारा, अध्यात्म चेतना के जागरण के द्वारा निर्विकल्प या निर्विचार अवस्था की ओर जाना चाहते हैं तो हमें शब्द को समझकर, उसके चक्रव्यूह को तोड़ना होगा । इसे तोड़े बिना केवल चैतन्य की अनुभूति का क्षण, केवल निर्विकार की अनुभूति का क्षण हमें प्राप्त नहीं हो सकता । शब्द उत्पन्न होता है तब प्रयत्न सूक्ष्म है । जब वह प्रबल होता है तब शब्द स्थूल होता चला जाता है । शब्द की उत्पत्ति का यही क्रम है कि वह उत्पत्तिकाल में सूक्ष्म होता है और बाहर आते-आते स्थूल बन जाता है। जो सूक्ष्म है, वह हमें सुनाई नहीं देता । जो स्थूल होता है, वही हमें सुनाई देता है । ध्वनि-विज्ञान के अनुसार दो प्रकार की ध्वनियां होती हैं— श्रव्य ध्वनि अश्रव्य ध्वनि । अश्रव्य ध्वनि अर्थात् अल्ट्रा साउण्ड (Ultra Sound), सुपर सोनिक ( Super Sonic) यह सुनाई नहीं देता । हमारा कान केवल ३२४७० कंपनों को ही पकड़ सकता है। कंपन तो अरबों होते हैं । किन्तु कान ३२४७० आवृत्ति के कंपनों को ही पकड़ सकता है, सूक्ष्म कंपनों को नहीं पकड़ सकता । यदि हमारा कान सूक्ष्म कंपनों को पकड़ने लग जाए तो आदमी जी ही नहीं सकता। आदमी कमरे में जाता है। चारों ओर दरवाजे बंद कर अपने को अकेला मानता है किन्तु कान यदि सूक्ष्म शब्दों को पकड़ने लग जाए तो ज्ञात होगा कि आदमी कहीं भी अकेला नहीं है । अकेले होने की बात मिथ्या है | हमारे चारों ओर इतना कोलाहल है यदि हम सारा सुन सकें तो पागल होने के अतिरिक्त और कुछ नहीं बच सकता । किन्तु प्रकृति की इतनी सुन्दर व्यवस्था है कि कान उतने ही प्रकंपनों को सुन सकता है, जिससे कोई बाधा न आए। यह समूचा आकाश ध्वनि तरंगों से प्रकंपित है । अनंत काल से इस आकाश में भाषा वर्गणा के पुद्गल बिखरे पड़े हैं । एक आदमी बोलता है । वह बोल चुका । बोलते समय भाषा - वर्गणा के पुद्गल निकलते हैं और आकाश में जाकर स्थिर हो जाते हैं। हजारों-लाखों वर्षों तक वे उसी रूप में रह जाते हैं। फ्रांस के वैज्ञानिकों ने एक प्रयत्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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