________________
मंत्र क्या है ? : १३
खेचरी मुद्रा है। जब यह लगे कि विकल्पों का ज्वार आ रहा है, तब खेचरी मुद्रा करने पर विकल्पों का तांता टूट जाता है। जीभ को दांतों के बीच दबाए रखने से भी विकल्पों का प्रवाह रुक जाता है। एक उपाय यह भी है। -नीचे के दांतों की श्रेणी के पास ज्ञान-तंतु हैं, वहां जीभ को अटका दें, जीभ को स्थिर कर दें, सारे विकल्प शांत हो जाएंगे। जीभ और विकल्प का संबंध बहुत अटपटा-सा लग सकता है। प्रश्न उठ सकता है कि जीभ
और विकल्प का संबंध ही क्या ? विकल्प का संबंध मन से तो हो सकता है, किन्तु जीभ से कैसे हो सकता है ? गहराई से पर्यालोचन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि विकल्पों का स्रोत है—शब्द, भाषा। भाषा का संबंध जीभ से है। जब जीभ स्थिर होती है, तब मन स्थिर होता है। जब जीभ चंचल होती है, तब मन भी चंचल हो जाता है। यह स्थायी अनुबंध है । मन में कोई इच्छा उत्पन्न होती है। उसे अभिव्यक्ति देने के लिए भाषा का माध्यम लेना पड़ता है। भाषा वाहन बनती है। मन उस वाहन पर चढ़कर अपने गंतव्य तक पहुंच जाता है।
जब तक हम मन की चंचलता के माध्यम को नहीं समझेंगे तब तक मन की चंचलता को नहीं मिटा पायेंगे। हमारे मन पर जो चंचलता आरोपित कर रखी है, उसे भी समाप्त नहीं कर पायेंगे। इसके लिए शब्द को समझना अत्यन्त आवश्यक है।
शब्द अनेक प्रकार का होता है। मैं दो प्रकार के शब्द की ही चर्चा करूंगा। शब्द का एक प्रकार है-—जल्प और दूसरा प्रकार है—अन्तर्जल्प। हम बोलते हैं, यह है जल्प। जल्प का अर्थ है --स्पष्ट वचन, व्यक्त वचन | हम बोलते नहीं, किन्तु मन से सोचते हैं, मन में विकल्प करते हैं, यह है अन्तर्जल्प । मुंह बंद है, होंठ स्थिर हैं, न कोई सुन रहा है, फिर भी मन में आदमी बोलता चला जा रहा है, यह है अन्तर्जल्प। सोचने का अर्थ ही है-भीतर में बोलना। सोचना और बोलना दो नहीं हैं। सोने के समय में भी हम बोलते हैं और बोलने के समय में भी हम सोचते हैं। जब हम जोर से बोलते हैं तब बाहर से बोलते हैं और जब मन में विकल्प करते हैं तो भीतर से बोलते हैं। एक है जल्प और दूसरा है अन्तर्जल्प । हम भीतर बोलने को बोलना नहीं मानते, बाहर बोलने को ही बोलना मानते हैं। किन्तु दोनों में कोई अन्तर नहीं है। आदमी ने मन में सोचा --मुझे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org