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अनन्त की अनुभूति : ७
जा सकता है। भारतवर्ष में वनस्पति के विषय में बहुत अनुसंधान हुए हैं। एक प्राचीन ग्रन्थ है। उसमें औषधियों के बावन कल्प बतलाए गए हैं। प्रत्येक कल्प में अतीन्द्रिय क्षमता को जागृत करने और हमारे चिन्तन से परे की क्षमताओं का विकास करने का वर्णन किया गया है। वनस्पतियों की शक्ति अपार है। हम उनकी शक्तियों का एक अंश मात्र जानते हैं।
तीसरी बात है—मंत्र। मंत्र की शक्ति के विषय में भी हमारी कल्पना स्पष्ट नहीं है। हमने इतनी बड़ी संपदा को कैसे विस्तृत कर दिया ? मैंने इसे समझने का प्रयत्न किया। जैसे-जैसे मैने इस विषय का अवगाहन किया तो मुझे प्रतीत हुआ कि ध्यान और मंत्र को अलग नहीं किया जा सकता। ऐसे उन्हें नहीं बांटा जा सकता कि केवल ध्यान करें या केवल मंत्र-जप करें। मंत्रजप भी है और ध्यान भी है। यह दोनों है। हम इतना तो जानते हैं कि मंत्र-प्रयोग से बहुत बड़ा काम हो सकता है, किन्तु कैसे होता है, यह हम नहीं जानते। जब तक मंत्र-विधि को हम नहीं जानते, तब तक काम पूरा नहीं हो सकता। ____ आदिम युग की बात है। उस समय समाज का नया निर्माण हो रहा था। जो युगल थे, आदिवासी थे, वे सामाजिक बन रहे थे। वे ऋषभ के पास आए और बोले – 'बाबा ! हमने खेती करनी सीख ली। खेतों में अनाज पक गया। हमने पका अनाज खाना शुरू कर दिया। किन्तु इस अनाज से पेट में दर्द होता है, अब क्या करें ?' ऋषभ ने कहा-अनाज कच्चा नहीं खाया जाता। तुम अग्नि जलाना सीख लो। उसमें अनाज पकाकर खाओ फिर पेट में दर्द नहीं होगा।' वे अपने-अपने घर गए। अग्नि जलाई, उसमें अनाज डाल दिया। अनाज जलकर राख हो गया। स्वयं क्या खाएं, सारा अनाज अग्नि खा गई। वे फिर ऋषभ के पास आए और समस्या का समाधान चाहा। ____ अग्नि में अनाज पकता है, इतना जान लेने मात्र से कुछ नहीं बनता। अग्नि में अनाज कैसे पकता है, यह जानना भी आवश्यक होता है। जब तक पूरी विधि हाथ नहीं आती, अधूरा सूत्र हमारा साथ नहीं दे सकता । उससे सफलता नहीं मिल सकती।
मंत्र से सफलता मिलती है। मंत्र से यह हो सकता है, वह हो सकता है, इतना जान लेना पर्याप्त नहीं होता। मंत्र से सफलता कैसे
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