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६ : एसो पंच णमोक्कारो
घटना का जो निमित्त बनता है, वह निमित्त टल जाता है। रनों की इस विशेषता को लक्ष्य करके ही कहा गया है कि मणि, मंत्र और औषधियों का प्रभाव अचिन्त्य होता है। __ एक आदमी के पास मूंगा था। उसको रेशमी कपड़े से ढंक दिया। उस कपड़े पर जलता हुआ अंगारा रखा। वस्त्र नहीं जला क्योकि अंगारे की ऊष्मा को मूंगा खींच लेता है; कपड़े को जलने के लिए ऊष्मा ही प्राप्त नहीं होती।
इसी प्रकार रल ग्रहों के विकिरणों को अपने में समाविष्ट कर लेते हैं और व्यक्ति बच जाता है। रनों की इस क्षमता के कारण ही उनको अचिन्त्य प्रभाव वाला माना गया है।
आज के वैज्ञानिक लेसर किरण का उपयोग करते हैं। लाल रत्न से उसका आविष्कार किया गया। इस प्रसंग में मैं एक प्राचीन तथ्य की स्मृति दिलाना चाहता हूं, जो विस्मृत हो चुका है। जैन आममों में वैक्रिय शरीर के निर्माण के विषय में अनेक प्रसंग उल्लिखित हैं। देवता वैक्रिय शरीर की संरचना करते हैं और लब्धिसंपन्न मनुष्य भी वैक्रिय शरीर की संरचना करते हैं। वैक्रिय शरीर का निर्माण करने वाला अपने स्थूल शरीर से सूक्ष्म परमाणु निकालता है और उस नए शरीर का निर्माण कर लेता है। जो वैक्रिय शरीर का निर्माण करते हैं वे उत्तम रनों के सूक्ष्म परमाणुओं को ग्रहण करते हैं। इन रनों के विकिरणों का संकलन कर नाना रूप बनाए जा सकते हैं और वैक्रिय शक्ति का विकास और उपयोग किया जा सकता है। इन सारे रहस्यों को ध्यान में रखकर कहा गया है कि रत्नों का प्रभाव अचिन्त्य होता है। __ वनस्पति का प्रभाव भी कल्पनातीत होता है। सिद्धि के अनेक साधन हैं। औषधि से भी सिद्धि प्राप्त होती है, तप से भी सिद्धि प्राप्त होती है और समाधि से भी सिद्धि प्राप्त होती है। एक व्यक्ति अपने पैरों पर औषधियों के लेप करता है और आकाश में उड़ने लग जाता है। जैन परम्परा में ‘पादलिप्तसूरी' नाम के आचार्य हुए हैं। वे अपने पैरों पर औषधियों का लेप करते और आकाश में उड़कर दूर-दूर देशों का भ्रमण कर आते। इस लेप के कारण ही उनका नाम ‘पादलिप्त' पड़ा। वनस्पति के प्रयोग से आकाश में उड़ा जा सकता है, सुदूर को देखा जा सकता है, भीत से परे भी देखा
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