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________________ अनन्त की अनुभूति : ५ जा सकता। मंत्र से आगे फिर तंत्र की बात आई। एक प्रसिद्ध वाक्य है— 'अचिन्त्यो हि मणिमन्त्रौषधीनां प्रभावः'—मणि, मंत्र और औषधियों का प्रभाव अचिन्त्य होता है। उनके प्रभाव के बारे में कोई कल्पना ही नहीं की जा सकती। सामान्यतःआदमी मानता है कि रत्न है तो सब कुछ है। वह धन है, वह अर्थ है। उसमें विनिमय की क्षमता है। उससे पदार्थ खरीदे जा सकते हैं। रत्न का इतना प्रभाव नहीं है। इतना ही प्रभाव होता हो यह बात नहीं कही जाती-'अचिन्त्यो मणिमंत्रौषधीनां प्रभावः।' अचिन्त्य प्रभाव कहने की आवश्यकता नहीं होती। उसमें अचिन्त्य प्रभाव है। हम इसको समझें । हमारा विश्व संक्रमण का विश्व है। इसमें चारों ओर से विकिरण होता है। प्रत्येक पदार्थ अपनी रश्मियां छोड़ता है। ऐसा एक भी पदार्थ नहीं है, जिससे रश्मियां विकिरण नहीं होती हों। सारे पदार्थ विकिरण कर रहे हैं। प्रत्येक पदार्थ में से अनन्त-अनन्त परमाणु निकल रहे हैं। प्रत्येक पदार्थ में अनन्त-अनन्त परमाणु जा रहे हैं। परमाणुओं के संक्रमण को नहीं रोका जा सकता। एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ में परमाणु संक्रमित हो रहे हैं। ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है, जो अपने आपको इस संक्रमण से बचा सके। हम पृथ्वी पर जीते हैं, किन्तु पृथ्वी के पदार्थ ही हमें संक्रान्त नहीं करते। इस असीम आकाश में विचरण करने वाले असंख्य ग्रहों के परमाणु भी हमें संक्रान्त करते हैं। उन ग्रहों के विकिरण हमको प्रभावित करते हैं। भगवान् महावीर में विश्व-स्थिति के दस सूत्र बतलाए। उनमें एक सूत्र का प्रतिपाद्य है- प्रत्येक पदार्थ दूसरे पदार्थ से प्रभावित होता है। अप्रभाव क्षेत्र जैसा कुछ भी नहीं है। व्यक्ति जिन ग्रहों में जन्म लेता है, उन ग्रहों के विकिरण व्यक्ति को प्रभावित करते हैं। जैसे-जैसे संक्रमण होता है, व्यक्ति अच्छा या बुरा बन जाता है। ज्योतिषियों ने इस विषय में अनेक अनुसंधान किए। उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला है कि ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए अनेक उपायों में से एक उपाय है —रत्नों को शरीर पर धारण करना। ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचाना रत्नों का अचिन्त्य प्रभाव है। ग्रह भाग्य को नहीं बदल सकते, किन्तु ग्रहों से आने वाले विकिरण को झेलने की क्षमता रत्नों में होती है और व्यक्ति का भाग्य बदल जाता है। रत्न ग्रहों के दुष्प्रभाव को अपने पर झेल लेते हैं और व्यक्ति का बचाव हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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