SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनन्त की अनुभूति : ३ सकता। अब भी तुम उतने ही धनी हो, जितने पहले थे। तुम्हारे गले में यह क्या बंधा है ?' उसने कहा—'मेरे पिता ने मेरे गले में एक ताबीज बांधा था। जिससे कि मैं उन सारी बुरी हवाओं से बच जाऊं। मेरे पर बुरी छाया न पड़े, इसलिए यह ताबीज बंधा है ?' मित्र ने कहा--- यह ताबीज ही रहस्य का खजाना है। इसे तोड़ो सब कुछ समझ में आ जाएगा।' ताबीज को तोड़ा। पहली पीतल की खोल उतर गई। फिर चांदी की खोल उतरी और फिर सोने की खोल उतरी। तीनों आवरण हट गए। अन्दर था एक बड़ा-सा हीरा, जो चमक रहा था। मित्र ने कहा- 'अव बोलो, जिसके पास यह हीरा हो वह भिखारी कैसे हो सकता है ? तुम लाखों रुपयों की संपदा अपने गले में बांधे फिरते हो, फिर दरिद्र कैसे ? तुम धनी हो ।' ___ बहुत बार ऐसा होता है, व्यक्ति को अपनी अटूट संपदा का पता नहीं रहता। मनुष्य अपने से बहुत अनजान है इसलिए अपने को अज्ञानी, अशक्त और मूर्छा में आसक्त समझता है। वह असीम है, अनन्त है, फिर भी अपने को ससीम अनुभव कर रहा है। उसे अनंता की विस्मृति हो गई है। इस विस्मृति ने उसे सीमा में डाल दिया। आदमी ससीम नहीं है। वह असीम है, अनन्त है। किन्तु वह ससीम मान बैठा है। उसकी सीमा के दो प्रहरी हैं। एक है-अहंकार और दूसरा है—ममकार । ये दोनों प्रहरी शरीर के भीतर बैठे हुए अनन्त चैतन्य को बाहर नहीं आने देते। मनुष्य को मूल परिचय से वंचित रखने वाले इन दोनों प्रहरियों ने मनुष्य को सीमा में बांध रखा है। शरीर एक सीमा है। जब अहंकार की चेतना जागती है तब व्यक्ति सबसे टूट जाता है। समानता का सूत्र अस्त-व्यस्त हो जाता है। एक आदमी दूसरे आदमी के समान है। दोनों में कोई अन्तर नहीं है। कोई किसी से हीन नहीं है। कोई किसी से अतिरिक्त नहीं है। किन्तु अहंकार की चेतना ने व्यक्ति को ऐसा बांधा कि वह अनेक उपाधियों के साथ अपने आपको अनुभव करने लगा। कोई भी व्यक्ति इस दुनिया में ऐसा नहीं है, जो अपने को निरुपाधिक कह सके । (सबके पीछे अहंकार की उपाधियां जुड़ी हुई हैं। मैं व्यापारी हूं। मैं कर्मचारी हूं। मैं ग्रेजुएट हूं। मैं बुद्धिवादी हूं। मैं अमुक हूं, मैं अमुक हूं--इस प्रकार सब अहंकार के सूत्र से बंटे हुए हैं। मैं विद्वान् हूं'—इसका अर्थ यह हुआ कि मैं अन्य लोगों से अलग हो गया और समानता का सूत्र टूट गया। दो श्रेणियां बन गईं। एक विद्वानों की श्रेणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy