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२ : एसो पंच णमोक्कारो
समस्याएं एक के बाद एक आती रहती हैं। प्रश्न होता है कि समस्या का मूल क्या है ? मनुष्य मूल को खोजना पसन्द करता है। एक जिज्ञासु ने पूछा-पाप का मूल क्या है ? उत्तर दिया गया-पाप का मूल है अभिमान। व्यक्ति सदा से मूल को पूछता रहा है। उसने धर्म का मूल पूछा, दया और अहिंसा का मूल पूछा। मूल को जानने की बात सबके मन में होती है। मनुष्य फल और फूल को देखकर ही संतोष नहीं लेता। वह मूल को समझना चाहता है, बीज को समझना चाहता है। इसी प्रकार समस्या का मूल क्या है ? समस्या का पिता कौन है ? ये प्रश्न बहुत बार उभरते हैं। मैं मानता हूं, समस्या का मूल है- अपने आपसे अपरिचित रहना । मनुष्य सबको जानता है, किन्तु अपने आपको नहीं जानता। वह अपने से अपरिचित है इसलिए समस्याएं अनन्त होती चली जाती हैं। उन समस्याओं का कहीं अन्त नहीं आता, कोई समाधान नहीं मिलता। एक समस्या सुलझने लगती है, दूसरी समस्या सामने उपस्थित हो जाती है। दूसरी समस्या सुलझने लगती है, तीसरी समस्या उठ खड़ी होती है। यह समस्या का चक्र निरंतर चलता रहता है। प्रत्येक समाधान एक नई समस्या पैदा कर देता है। इसका मूल कारण है अपने आपसे अपरिचित होना। अपरिचय की स्थिति में हम अपने को समझ नहीं पाते। हम अपनी संपदा, वैभव और शक्ति को नहीं जान पाते।
मनुष्य चेतनावान् है। वह अनन्त ज्ञान का धनी है, फिर भी वह अपने को अज्ञानी मानता है। वह शक्ति-सम्पन्न होते हुए भी अपने को शक्तिहीन मानता है। वह वीतराग और परम आत्मा होते हुए भी अपने को कषाययुक्त
और अपरम मानता है। यह इसलिए है कि वह अपने से अपरिचित है। जब तक यह अपरिचय बना रहेगा तब तक वह दरिद्र, हीन और दीन मानता ही रहेगा। ___ एक धटी व्यक्ति था। वह मर गया। लड़के ने सोचा, अब वह दरिद्र हो गया है। वह भिखारी बन गया। वह भीख मांगने लगा। एक दिन पुराना मित्र मिल गया। भिखारी के वेश में अपने मित्र को देखकर अवाक् रह गया। उसने पूछा- 'यह क्या ? तुम इतने बड़े धनी के पुत्र, भिखारी कैसे ?' उसने कहा--- ‘सारी सम्पदा नष्ट हो गई। सब कुछ चला गया । अब मेरे लिए भीख मांगना ही बचा है।' मित्र बोला—'यह कभी नहीं हो
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