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१. अनन्त की अनुभूति
हम अनन्त से अपरिचित हैं। अनन्त से अपरिचित होने का अर्थ अपने आप से अपरिचित होना
हमारा अस्तित्व अनन्त है, किन्तु हम शरीर की सीमा में बंदी हैं इसलिए अपने-आपको ससीम अनुभव कर रहे हैं। शरीर की सीमा के दो प्रहरी हैं- अहंकार और ममकार । अहंकार समानता के सूत्र को काट देता है। ममकार विजातीय में सजातीय की भावना भर देता है। असीम का बोध अनन्त की अनुभूति द्वारा। उसके साधन हैंसंयम, तप, ध्यान, मंत्र और तंत्र। मंत्र की अचिन्त्य शक्ति। मंत्र प्रतिरोध-शक्ति भी है और चिकित्सा भी है। णमो अरहंताणं णमो-अहं का विसर्जन अरहंताणं-ममत्व का विसर्जन अनन्त की अनुभूति तब तक नहीं जब तक अपूर्णता । अपूर्णता के तीन लक्षण- अज्ञान, मूर्छा, अंतराय-विघ्न । इस सप्ताक्षरी मंत्र से अपूर्णता समाप्त होती है।
हम जिस विश्व में जी रहे हैं, वह समस्याओं का विश्व है। जीवन में
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