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________________ परिशिष्ट : १५५ ४. ॐ ह्रीं ह्रीं हूँ : असिआउसा नमः ५. ॐ अर्ह अ शि अ उ सा नमः। (एक लाख जप) ६. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ॐ अ सि आ उ सा नमः। [यह त्रिभुवनस्वामिनी विद्या है। एक लाख जप । सर्वसिद्धि । ] ७. ॐ ह्रीं अहँ अ सि आ उ सा क्लीं नमः । [विषनाशक] ८. ॐ हूं ॐ ह्रीं अहँ ऐं श्रीं अ सि आ उ सा नमः । (वाद विजय) ६. शरीर-रक्षण के लिए-'अ' मस्तक में, 'सि'—मुख में, 'आ'—कंठ में, 'उ'- हृदय में, 'सा' --चरण में स्थापित करें। अहँ का ध्यान १. अहँ अरहंत की साक्षात् सर्ववर्णमयी मूर्ति है। इस अहँ का सम्पूर्ण मेरुदण्ड (मेरुदण्डगत सुषुम्ना) में ध्यान करनेवाले आचार्य समस्त श्रुतार्थ के प्रवक्ता होते हैं। २. नाभिगत सुवर्णकमल के मध्य में 'अर्ह' की कल्पना करें। फिर वह 'अहँ आकाश में सभी दिशाओं में संचरण कर रहा है, ऐसा चिन्तन करें। जिसका मन इस ध्यान में लीन हो जाता है वह साधक स्वप्न में भी अहँ के अतिरिक्त और कुछ नहीं देखता। ॐ पांच (अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु,) पदों से निष्पन्न है। संस्कृत के सोलह अक्षर --- 'अर्हत्-सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधुभ्यो नमः' से निष्पन्न है। इनको सोलह पंखुड़ियों वाले हृत्कमल में स्थापित करें। बीच की कर्णिका में 'सिद्ध' की स्थापना करें। निष्पत्ति—१. दो सौ बार ध्यान करने से एक उपवास का फल । २. 'अरहंतसिद्ध'- इन छह अक्षरों का तीन सौ बार जाप करने से एक उपवास का फल। ३. 'अरहंत'-चार सौ बार जाप करने से एक उपवास का फल । ४. [अर्ह (ऽर्ह) का अवग्रह 'अ' रूप] 'अ' कुण्डलिनी स्वरूप है। नाभिकमल में 'अ' का पांच सौ बार ध्यान करने से एक उपवास का फल। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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