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परिशिष्ट : १४५
११. हाथ से माला फेरना।
दायें हाथ से नन्द्यावर्त की पद्धति से १२ बार, बायें हाथ से शंखावर्त की पद्धति से ६ बार, कुल १२x६=१०८ बार।
बायें हाथ+शंखावर्त
७
८
६ १०
तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठ
दायें हाथ+नन्द्यावर्त
| ४
५
१२
| २७ ६११
कानिष्ठा, अनामिका, मध्यमा, तर्जनी
रक्षा कवच
दूसरे के शरीर में अपने शरीर को स्थापित करना-वहां स्थापित अपने मस्तक, मुख, कंठ, हृदय और चरण-स्थानों में क्रमशः अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और मुनि पदों का न्यास करना। इससे रक्षा होती है।
हृदय में चार दल वाले कमल की कल्पना करें। क्रमशः ‘णमो सिद्धाणं'---ऐसे पांच वर्णवाले मन्त्र का ध्यान करें। फल-कर्म-क्षय।
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