________________
११६ : एसो पंच णमोक्कारो
की आशा नहीं कर सकते, वह व्यक्ति सुषुम्ना या मध्यमार्ग में प्राणधारा प्रवाहित होने पर अपने-आप अच्छा आचरण करने लग जाता है। किसी उपदेश की जरूरत नहीं, किसी को समझाने की जरूरत नहीं। सुषुम्ना के जागरण द्वारा आचरण की शुद्धि अपने-आप हो जाती है और उसके जागरण में ओंकार के जप का बहुत बड़ा योग हो सकता है। ओंकार का जप तीनों स्थितियों में चलता है—वाक के रूप में, वाक् से अन्तर्जल्प के रूप में और सुषुम्ना में प्रवेश कर ज्ञान के रूप में। जब हमारी चेतना प्राणधारा के साथ प्रवाहित होने लग जाती है उस स्थिति में व्यक्तित्व में सहज ही परिवर्तन घटित होता है, जिसकी हम पहले कल्पना भी नहीं कर सकते। ___ शब्द की शक्ति कम नहीं होती। उसकी ध्वनि-तरंगें बंद पड़े दरवाजों को खोल देती हैं, अज्ञात ज्ञात हो जाता है, शक्तिहीनता शक्तिस्रोत में बदल जाती है, दुःख सुख में बदल जाता है। भगवान् महावीर ने गौतम गणधर को 'उप्पन्ने इ वा विगमे इ वा धुवे इ वा'-इस त्रिपदी का मंत्र दिया । इसके माध्यम से उनकी अन्तश्चेतना जाग उठी। उन्होंने समूचे श्रुत का अवगाहन कर लिया। ज्ञान के सब द्वार खुल गए। शब्द में उतर सकने वाला ज्ञान उनसे अज्ञात नहीं रहा। वे श्रृत के पारगामी बन गए।
चिलातीपुत्र बहुत बड़ा चोर था। उसने एक कन्या की हत्या कर डाली। हाथ में उसका सिर है और तलवार खून से सनी हुई है। जंगल में दौड़ा जा रहा है। पुलिस पीछा कर रही है। उसने देखा, एक साधु ध्यान-मुद्रा में खड़ा है। साधु के पास जाकर बोला—कुछ बताओ। साधु ने केवल तीन शब्द उच्चारित किए---उपसम, संवेग, संवर। इन तीन शब्दों का उच्चारण हुआ और चिलातीपुत्र एकदम बदल गया। वह चोर से साधु बन गया। मंत्र-शक्ति के द्वारा उसका रूप ही बदल गया। मंत्र के द्वारा प्रकट होने वाली ऊर्जा से व्यक्ति में जो रूपान्तरण होता है, वह हम जानते हैं और मानते भी हैं। हमारी कठिनाई यह है कि हम मानते ज्यादा हैं, जानते कम हैं। ओंकार का जप करने वाले भी ओंकार को मानते ज्यादा हैं, जानते कम हैं। दूसरे मंत्रों का जप करने वालों की भी यही दशा है। इसीलिए हमें शब्द की शक्ति में, मंत्र-शक्ति में विश्वास कम है। केवल मानने से काम नहीं चलेगा, कुछ जानें। एक मंत्र के साथ बहुत बातें जुड़ी हुई होती हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org