SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०४ : एसो पंच णमोक्कारो पर्यायों से युक्त होता है। प्रत्येक अक्षर के अनन्त पर्याय हैं। अनन्त अवस्थाएं घटित होती हैं। हम उनकी कल्पना भी नहीं कर सकते । अक्षर अर्थात् अक्षरणशील । उसका कभी क्षरण नहीं होता। अक्षर तीन हैंपरमात्मा अक्षर है, आत्मा अक्षर है और वर्णमाला का वर्ण अक्षर है। इनका कभी क्षरण नहीं होता। ___ अक्षर की अनन्त पर्याय हैं। यह बात सामान्यतः समझ में नहीं आती। एक छोटा-सा बच्चा भी 'अ', 'आ' 'क', 'ख' रट लेता है। इससे भाषा का विकास होता है। भाषा के द्वारा विचारों का विनिमय होता है। इतनी बात तो समझ में आ जाती है, किन्तु एक-एक अक्षर के अनन्त पर्याय हैं, उसकी अनन्त शक्ति है, यह बात समझ में नहीं आती। एक आचार्य ने इस तथ्य को समझाने के लिए एक ग्रन्थ का निर्माण किया। उसका नाम है--'अष्टलक्षी'। उसमें आठ अक्षरों का प्रयोग है—'राजा नो ददते सौख्यम्। आचार्य ने इस पद के आठ लाख अर्थ किए हैं। उन्होंने लिखा है-'मेरे जैसा अल्पज्ञानी व्यक्ति इसके आठ लाख अर्थ कर सका है। कोई सिद्ध ज्ञानी इसके अनन्त अर्थ कर सकता है।' यह एक छोटा-सा उदाहरण है। इससे हम अक्षर की अनन्त क्षमता को समझ सकते हैं। मंत्र छोटा होता है, पर उसमें अनन्त शक्ति होती है। बरगद का बीज बहुत छोटा होता है। प्रारंभ में कोई यह कल्पना नहीं कर सकता कि इतना छोटा बीज इतना बड़ा वटवृक्ष बन जाएगा, जिसकी छांह में सैकड़ों घोड़े बांधे जा सकते हैं। इतने बड़े-बड़े बरगद के पेड़ भारत में मौजूद हैं। आप स्वयं इसका अनुभव करें। 'रं', 'रं' को लें। इनका उच्चारण करें। मात्र उच्चारण, मात्र ध्वनि । इनके साथ मंत्र की भावना न भी जोड़ें, इसके साथ अन्तर्ध्वनि को न भी जोड़ें, एकाग्रता को भी जोड़ें, केवल रं, रं, रं की ध्वनि करते जाएं। कुछ ही समय के बाद आप अनुभव करने लगेंगे कि आपके शरीर में ऊष्मा बढ़ रही है, ताप बढ़ रहा है। शरीर जलने लगा है। ध्यान-काल में कई प्रकार के अनुभव होते हैं। किसी साधक को सूर्य का प्रतिबिम्ब दीखने लगता है तो किसी को चन्द्रमा का पूर्ण बिम्ब दृग्गोचर होता है। किसी को अत्यधिक गर्मी का अनुभव होता है तो किसी को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy