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महामंत्र : निष्पत्तियां-कसौटियां : १०३
आप यह न सोचें कि मंत्र के विषय में सुनने, जानने मात्र से निष्पत्तियां मिल जाएंगी। आकाश की ओर देखा और निष्पत्तियां बरस जाएंगी। ऐसा कभी संभव नहीं है। अभ्यास और साधना जरूरी है। साधना के बिना यह संभव नहीं है।
सामग्री होने पर भी जब साधना या अभ्यास नहीं किया जाता तब कच्ची सामग्री से कुछ नहीं बनता। कच्ची सामग्री को पक्की बनाना चाहिए। कच्चे माल को पक्का बनाना होता है। जब तक कच्ची सामग्री पक नहीं जाती, तब तक वह सामग्री कुछ भी काम की नहीं रहती। वह केवल पड़ी रहने योग्य होती है। उसका कोई भी उपयोग नहीं हो सकता।
बहिन के घर विवाह था। भाई गया। उसे कपड़े देने थे। उसने सोचा, कौन झंझट करे ? वह रुई के थाल भरकर ले गया। बहिन ने थाल देखे। आश्चर्यचकित मुद्रा में पूछा-'भाई ! यह क्या ? यह कैसा मजाक !' भाई ने कहा- 'बहिन ! तू नहीं समझती। सारे कपड़े रुई से ही तो बनते हैं। मैंने मूल समग्री दी है।'
भोजन का समय हुआ। सारे भोजन करने बैठे। सभी के थानों में मिठाई आदि खाद्य सामग्री थी। भाई के थाल में केवल गेहूं थे। भाई ने देखा। वह बोला— 'बहिन ! यह क्या ? क्या केवल गेहूं खाए जाते हैं ?' बहिन बोली-'भाई ! सारी सामग्री गेहूं से ही तो बनती है। मैंने मूल सामग्री परोसी है।' भाई समझ गया ।
केवल कच्ची सामग्री उपयोगी नहीं होती। पकने पर ही वह उपयोगी होती है। ___ इसी प्रकार मंत्र की सारी सामग्री है, किंतु यदि मंत्र की आराधना या अभ्यास नहीं किया जाता है तो सामग्री केवल सामग्री ही बनी रह जाती है। उससे कोई निष्पत्ति नहीं होती। कुछ भी उपलब्ध नहीं होता। साधना बहुत जरूरी है। साधना के बाद सिद्धि की आशा की जा सकती है, किंतु बिना साधना के सिद्धि की कामना करना निरर्थक है।
मंत्र स्वयं शक्तिशाली होता है। उसका वर्ण-विन्यास, अक्षर-संरचना शक्तिशाली होती है। एक-एक अक्षर इतना शक्तिशाली होता है कि जिसकी कोई कल्पना नहीं की जा सकती। आप इसे दर्शन की गहराइयों में जाकर समझें। वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर 'अ', 'आ' आदि अनन्त
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