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१०२ : एसो पंच णमोक्कारो
हमारे शरीर में सबसे अधिक सक्रियता पैदा करने वाला है—तैजस शरीर, विद्युत् शरीर। जब तक हमारा यह तैजस शरीर शक्तिशाली नहीं होता तब तक कोई भी प्राण शक्तिशाली नहीं होता। प्राण दस हैं—पांच इन्द्रियों के पांच प्राण, मन प्राण, वचन प्राण, शरीर प्राण, श्वास प्राण और आयुष्य प्राण । ये दसों प्राण तैजस की शक्ति के बिना निष्प्राण हो जाते हैं। सारे चमत्कार विद्युत् से निष्पन्न होते हैं। वर्तमान के विज्ञान ने जो भी विकास किया है, वह सारा विद्युत् का ऋणी है। सारा विकास ऊर्जा के आधार पर हुआ है। आज यदि विद्युत् न हो तो सारा विज्ञान ही समाप्त हो जाए। हमारा शरीर सदा से वैज्ञानिक है। इस शरीर में वैज्ञानिक युग अनादिकाल से चल रहा है। आज के वैज्ञानिक युग की आयु ४००, ५०० वर्षों की है, किन्तु मनुष्य के शरीर में वैज्ञानिक युग की आयु अनन्त काल की है। ___हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका विद्युत् पैदा करती है। हमारा मस्तिष्क धारावाही विद्युत् पैदा करता है। हमारे शरीर का कण-कण सांघर्षणिक विद्युत् उत्पन्न करता है। इस समूचे विद्युत् का जेनरेटर है —तैजस शरीर । यह शरीर जब शक्तिशाली होता है तब सब ठीक चलता है और यह शरीर जब मंद हो जाता है तब सब कुछ गड़बड़ा जाता है।
मंत्र की आराधना के द्वारा तैजस शरीर को सक्रिय बनाया जाता है। मंत्र की आराधना का सबसे पहला प्रभाव पड़ता है तैजस शरीर पर । जब तक तैजस शरीर तक मंत्र नहीं पहुंचता तब तक मंत्र सफल भी नहीं होता। वह मात्र शब्द का पुनरावर्तन बनकर रह जाता है। ___ मंत्र की सफलता का सूत्र है-शब्द को आगे पहुंचाते-पहुंचाते स्थूल शरीर की सीमाओं को पार कर, तैजस शरीर की सीमा में पहुंचा देना । - जब मंत्र तैजस शरीर तक पहुंच जाता है तब वहां उसकी शक्ति बढ़ जाती है। फिर तैजस शरीर से जो प्राणधारा निकलती है उससे मंत्र शक्तिशाली बन जाता है। इस स्थिति में शरीर की शक्ति बढ़ जाती है, मन की शक्ति बढ़ जाती है और संकल्प की शक्ति बढ़ जाती है। मन की सारी क्रियाओं की शक्ति बढ़ जाती है।
यह सारा का सारा आराधना के द्वारा संभव हो सकता है। केवल सामग्री से कुछ नहीं होता। सफलता के लिए अभ्यास अपेक्षित होता है।
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