________________
महामंत्र : निष्पत्तियां-कसौटियां : १०१
व्यक्ति ने समूचे भूतल पर, विश्व की सारी रचना पर अपना नियंत्रण पा लिया। जिसने संकल्प-शक्ति का विकास नहीं किया, उसने कुछ भी नहीं किया। वह चलता है तो लड़खड़ाता है, बैठता है तो सुस्त बनकर बैठता है और खड़ा होता है तो लड़खड़ाता-सा ही खड़ा होता है। व्यक्ति कोई भी काम करे, संकल्प-शक्ति के अभाव में वह कार्य का प्रारंभ रुआंसे की स्थिति में ही करता है और कार्य की संपन्नता भी रुआंसे की स्थिति में करता है। रोते-रोते ही शुरू करता है और रोते-रोते ही पूरा करता है। जिस व्यक्ति की संकल्प-शक्ति दृढ़ हो जाती है वह दुनिया से अजेय वन जाता है, चाहे फिर वह कुछ भी न करे। जिसके पास संकल्प-शक्ति नहीं होती, उसके पास सब कुछ होने पर भी वह अपने-आपको दीन, हीन अनुभव करता हैं। इस आंतरिक दीनता को, मन से उत्पन्न होने वाली दीनता को मिटाने का यदि कोई उपाय है तो वह है संकल्प-शक्ति। कुछेक व्यक्ति हीनभावना से इतने ग्रस्त होते हैं कि वे हर बात में हीनता का ही अनुभव करते हैं। वे प्रत्येक कार्य को निराशा के वातावरण में ही प्रारंभ करते हैं। चलते समय सोचते हैं-चल तो रहे हैं, घर सुरक्षित पहुंचेंगे या नहीं ? बाजार में जा रहे हैं, दुर्घटना से बचेंगे या नहीं ? निराशा ही निराशा। एक व्यक्ति ने मुझे बताया-मैं रात को जब सोता हूं तो यह आशंका बनी की बनी रहती है कि कहीं कमरे की छत नहीं टूट जाए। जब मैं पुल से गुजरता हूं तो चिंता रहती है कि पुल न टूट जाए। भय ही भय। आशंका ही आशंका। निराशा ही निराशा। यह सब मन की दुर्बलता के कारण होता है। मन इतना दुर्बल बन जाता है कि व्यक्ति चारों
ओर से भय, निराशा और आशंका से ग्रस्त हो जाता है। चारों ओर से निराशा बरसने लगती है। यह सब कुछ होता है संकल्प-शक्ति के अभाव में। जिसकी संकल्प-शक्ति दृढ़ होती है, वह टूटते हुए पुलों पर से भी हंसते-हंसते गुजर जाता है और कभी-कभी टूटने वाला पुल भी संकल्प-शक्ति से संपन्न व्यक्ति के चलने पर क्षण-भर के लिए टूटने से रुक जाता है। संकल्प-शक्ति के द्वारा ऐसे परमाणुओं का संक्रमण होता है कि होने वाली दुर्घटना भी टल जाती है।
मंत्र की साधना का बहुत बड़ा परिणाम, उपलब्धि या निष्पत्ति है--संकल्प-शक्ति का विकास। इसके साथ हम प्राण को भी समझें।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org