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१०० : एसो पंच णमोक्कारो
वह ठीक नहीं चल पाता। बाधाओं के निवारण का उपाय हमारे हाथ में होना चाहिए।
बाधाएं आंतरिक भी हैं और बाह्य भी हैं। भीतर से--मन से आने वाली बाधाएं भी हैं और वातावरण से आने वाली बाधाएं भी हैं। दोनों बाधाओं के बीच से व्यक्ति को गुजरना होता है। इसके लिए पूरी तैयारी और सामग्री चाहिए। उस सजा का सबसे पहला भाग है—संकल्प-शक्ति का विकास, इच्छा-शक्ति का विकास।
एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा- 'गुरुदेव ! सामने इतनी बड़ी चट्टान है। क्या इस पर भी किसी का शासन है ?'
गुरु ने कहा-'हां, है।' 'किसका शासन है ?'
'लोहे का। हथौड़ा या छेनी जब इस पर लगती है तब चूर-चूर हो जाती है।'
'लोहे पर किसका शासन है ?'
'शिष्य ! लोहे पर आग का शासन है। कितना भी लोहा हो, आग उसे पिघाल देती है।'
'गुरुदेव ! आग इतनी शक्तिशाली है, उस पर किसका शासन है ?' 'शिष्य ! आग पर पानी का शासन है।' 'गुरुदेव ! पानी पर किसका शासन है ?' 'शिष्य ! पानी पर वायु का शासन है।' 'गुरुदेव ! वायु पर किसका शासन है ?'
'शिष्य ! वायु पर संकल्प-शक्ति का शासन है। जिसकी संकल्प-शक्ति बलवान् होती है, वह वायु को वश में कर लेता है।
सामान्यतः व्यक्ति एक मिनट में १५-१७ श्वास लेता है। दीर्घश्वास के अभ्यास में, संकल्प-शक्ति के सहारे वह एक मिनट में चार, दो या एक श्वास भी लेने लग जाता है। संकल्प-शक्ति के द्वारा वायु पर नियंत्रण हो जाता है। संकल्प-शक्ति के प्रयोग से श्वास को बाहर या भीतर रोक सकते हैं। बाहर का श्वास बाहर और भीतर का श्वास भीतर ही रुक जाता है।
वायु पर संकल्प-शक्ति का नियंत्रण होता है। जिस व्यक्ति । संकल्प-शक्ति का विकास कर लिया, संकल्प-शक्ति की साधना कर ली, प
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