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________________ महामंत्र : निष्पत्तियां-कसौटियां : ६६ पर यह नहीं कह सकता कि ऐसा होता ही है। किंतु सिद्धांततः ऐसा लगता है कि यह होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है। जो बात अपने अनुभव में आती है, जिसका स्वयं अनुभव होता है, उसके विषय में पूरे आत्मविश्वास के साथ कुछ भी कहने में कोई कठिनाई नहीं होती, किंतु जिसका व्यक्ति स्वयं प्रयोग नहीं कर लेता, उसके विषय में बलपूर्वक कुछ कहना दूसरे को भुलावे में डालने जैसा है। यह उचित नहीं होता। यह सच है कि मंत्र की आराधना से ऐसा होता है किंतु मैं आपको यह नहीं कह सकता कि यह मेरा अपना अनुभव है। मंत्र की आराधना जैसे-जैसे आगे बढ़ती है। संकल्प-शक्ति का विकास होता चला जाता है। इससे इच्छाशक्ति बहुत विकसित होती है, प्रबल होती है। इससे एक प्रकार का कवच हमारे चारों ओर बन जाता है। तब बाहर का आक्रमण, बाहर का संक्रमण, बाहर का कुप्रभाव उस कवच को भेदकर व्यक्ति की चेतना तक नहीं पहुंच पाता। वह बाहर ही रह जाता है। संकल्पशक्ति और प्राण-शक्ति का विकास होता है। आभामंडल, लेश्याओं का घेरा और एक विचित्र प्रकार का ओरा—ये सारे हमारे शरीर के आसपास, चारों ओर एक वलयाकार में बन जाते हैं। संकल्प-शक्ति का बहुत बड़ा महत्त्व है। साधना की यह धुरी है। चाहे आप प्रेक्षा का अभ्यास करें, दीर्घश्वास का अभ्यास करें, शरीर-प्रेक्षा या चैतन्य-केन्द्र-प्रेक्षा का अभ्यास करें, लेश्याओं का ध्यान करें या और कुछ भी प्रयोग करें, प्रत्येक प्रयोग की पृष्ठभूमि में जिस सामग्री की जरूरत है, उस सामग्री का सबसे महत्त्वपूर्ण उपकरण है----संकल्प-शक्ति, इच्छा-शक्ति। जब तक संकल्प-शक्ति का विकास नहीं होता तब तक प्रेक्षा-ध्यान के अग्रिम अभ्यास में आने वाले अवरोधों को नहीं मिटाया जा सकता, आने वाली बाधाओं और विघ्नों का निराकरण नहीं किया जा सकता। एक विघ्न आता है और घटने टिक जाते हैं। एक बाधा आती है और व्यक्ति चलते-चलते रुक जाता है। एक बाधा आती है और साधना की दिशा ही बदल जाती है। यह दिशा का परिवर्तन, गति का परिवर्तन, स्थिति का परिवर्तन बाधाओं के कारण होता है। इसलिए साधना करने वाले व्यक्ति को पहले यह सोचना चाहिए कि बाधाओं का निवारण कैसे किया जाए। जब तक साधक बाधाओं के निवारण का उपाय साथ लेकर नहीं चलता तब तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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