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शारीरिक स्वास्थ्य और नमस्कार महामंत्र : १
के साथ, श्वेत वर्ण के साथ ध्यान करते हैं। इससे ज्ञान की सोयी हुई शक्तियां जागृत होती हैं, चेतना का जागरण होता है। इसीलिए इस पद की आराधना के साथ ज्ञानकेन्द्र और सफेद वर्ण की समायोजना की गई है। मंत्रशास्त्र का यह अभिमत है कि स्वास्थ्य के लिए कोई भी ध्यान करना चाहे तो उसे श्वेत वर्ण का ध्यान करना चाहिए। श्वेत वर्ण स्वास्थ्यदायक होता है, स्वास्थ्य का प्रतीक होता है। पता नहीं, होमियोपैथी वालों ने सफेद गोलियों का चुनाव क्यों किया ? उनकी सारी चीजें सफेद हैं। संभव है उन्होंने सोचा हो कि दवा रोग-निवारण में काम करेगी, साथ-साथ सफेद वर्ण भी उसका सहयोग करेगा। ___णमो सिद्धाणं' का ध्यान दर्शनकेन्द्र में रक्त वर्ण के साथ किया जाता है। बालसूर्य जैसा लाल वर्ण । दर्शनकेन्द्र बहुत ही महत्त्वपूर्ण चैतन्यकेन्द्र है। लालवर्ण हमारी आन्तरिक दृष्टि को जागृत करने वाला है। तृतीय नेत्र, पिच्यूटरी ग्लैण्ड और उसके स्रावों को नियंत्रित करने के लिए लाल रंग बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। लाल रंग इस ग्रन्थि को सक्रिय बनाता है। इस रंग की यह विशेषता है कि वह सक्रियता पैदा करता है। कभी सुस्ती या आलस्य का अनुभव हो, जड़ता आ जाए तो दर्शनकेन्द्र में दस मिनट तक लाल रंग का ध्यान करें। ऐसा अनुभव होगा कि स्फूर्ति आ गई है। मैं कोई रंग-चिकित्सा की बात नहीं कर रहा हूं। मैं मंत्रशास्त्र के आचार्यों द्वारा प्रतिपादित रंग-विज्ञान की बात कह रहा हूं। उन्होंने विभिन्न रंगों के आधार पर विभिन्न चैतन्यकेन्द्रों को जागृत करने और विभिन्न प्रयोजनों की सिद्धि की बात कही है। आत्म-साक्षात्कार, अन्तर्दृष्टि का विकास, अतीन्द्रिय चेतना का विकास—यह दर्शनकेन्द्र से होता है। ‘णमो सिद्धाणं' मंत्र, लालवर्ण और दर्शनकेन्द्र - इन तीनों का समायोजन हमारी आंतरिक दृष्टि को जागृत करने का अनुपम साधन है। यह एक मार्ग है। किसको कब सिद्धि होती है, यह उसके प्रयत्न की सघनता पर निर्भर करता है। इतना निश्चित है कि यह मार्ग वहां पहुंचाता है।
णमो आयरियाणं' मंत्र-पद है। इसका रंग पीला है। यह रंग हमारे मन को सक्रिय बनाता है। इसका स्थान है 'विशुद्धिकेन्द्र'। यह स्थान 'चंद्रमा' का है। हमारे शरीर में पूरा सौरमंडल है, सूरज है, चांद है, बुद्ध है, राहु है, मंगल है। सारे ग्रह हैं। हस्तरेखा विशेषज्ञ हाथ की रेखाओं के आधार
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