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६० : एसो पंच णमोक्कारो
गांठ खुले और उस पर ऐसा तीव्र प्रहार हो कि वह गांठ समाप्त ही हो जाए। यह स्मृति में रहे कि जितनी बीमारियां, उतने ही इलाज। ___मंत्रविद् आचार्यों ने नमस्कार महामंत्र के साथ रंगों का समायोजन किया। मंत्र के गूढ़तम रहस्यों को जानने वाले आचार्यों ने उन रहस्यों के आधार पर, एक-एक पद के लिए एक-एक रंग की समायोजना की। हमारा सारा जगत पौदगलिक है, भौतिक है। हमारा शरीर भी पौद्गलिक है। पुद्गल के चार लक्षण हैं-वर्ण, गंध, रस और स्पर्श । सारा भू-वलय, सारा मूर्त संसार वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के प्रकंपनों से प्रकंपित है। वर्ण (रंग) से हमारे शरीर का बहुत निकट का संबंध है। वर्ण से हमारे मन का, आवेगों का, कषायों का बहुत बड़ा संबंध है। शारीरिक स्वास्थ्य और अस्वास्थ्य, मन का स्वास्थ्य और अस्वास्थ्य, आवेगों की कमी और वृद्धि—ये सब इन रहस्यों पर निर्भर हैं कि हम किस प्रकार के रंगों का समायोजन करते हैं
और किस प्रकार के रंगों से हम अलगाव या संश्लेष करते हैं। नीला रंग शरीर में कम होता है तब क्रोध अधिक आता है। नीले रंग की पूर्ति हो जाने पर गुस्सा कम हो जाता है। श्वेत रंग की कमी होती है तब अस्वास्थ्य बढ़ता है। लाल रंग की कमी होने पर आलस्य और जड़ता पनपती है। पीले रंग की कमी होने पर ज्ञान-तंत निष्क्रिय बन जाते हैं। काले रंग की कमी होने पर प्रतिरोध की शक्ति कम हो जाती है। मंत्रशास्त्र कहता है-जब ज्ञान-तंतु निष्क्रिय हो जाएं तब ज्ञानकेन्द्र में दस मिट तक पीले रंग का ध्यान करें। ज्ञान-तंतु सक्रिय हो जाएंगे। व्यक्ति बहुत बड़ी समस्या में उलझा हुआ है, समाधान प्राप्त नहीं हो रहा है तो वह आनन्दकेन्द्र (हृदय) में दस मिनट तक पीले रंग, सुनहले रंग का ध्यान करे। समाधान सामने दीखने लगेगा।
रंगों के साथ मनुष्य के मन का, मनुष्य के शरीर का जितना गहरा संबंध है, उसे जब तक हम जान नहीं लेते तब तक नमस्कार महामंत्र की रंगों के साथ साधना करने की बात हमारी समझ में नहीं आ सकती।
हम ज्ञानकेन्द्र पर 'णमो अरहंताणं' का ध्यान श्वेत वर्ण के साथ करते हैं। श्वेत वर्ण हमारी आन्तरिक शक्तियों को जागृत करने वाला होता है। हमारे मस्तिष्क में ग्रे रंग, धूसर रंग का एक द्रव पदार्थ है। वह समूचे ज्ञान का संवाहक है। पृष्ठरज्जु में भी वह पदार्थ है। मस्तिष्क में अर्हत् का धूसर रंग
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